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________________ स्वप्न का फल बताने की कृपा करें। . .महारानी धारिणी के कथन को सुन कर कुछ विचार करने के अनन्तर महाराज अदीनशत्रु ने कहा कि प्रिये ! तुम्हारा यह स्वप्न बहुत उत्तम और मंगलकारी एवं कल्याणकारी है। इस का फल अर्थलाभ, पुत्रलाभ और राज्यलाभ होगा। विशेषरूप से इस का फल यह है कि तुम्हारे एक विशिष्टगुणसम्पन्न और बड़ा शूरवीर पुत्र उत्पन्न होगा। दूसरे शब्दों में तुम्हें एक सुयोग्य पुत्र की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा। इस प्रकार पतिदेव से स्वप्न का शुभ फल सुन कर धारिणी को बड़ी प्रसन्नता हुई और वह उन्हें प्रणाम कर वापस अपने स्थान पर लौट आई। किसी अन्य दुःस्वप्न से उक्त शुभ स्वप्न का फल नष्ट न हो जाए इस विचार से फिर वह नहीं सोई, किन्तु रात्रि का शेष भाग उस ने धर्मजागरण में ही व्यतीत किया। ___ गर्भवती रानी जिन कारणों से गर्भ को किसी प्रकार का कष्ट या हानि पहुँचने की संभावना होती है उन से वह बराबर सावधान रहने लगी। अधिक उष्ण, अधिक ठंडा, अधिक तीखा या अधिक खारा भोजन करना उस ने त्याग दिया। हित और मित भोजन तथा गर्भ को पुष्ट करने वाले अन्य पदार्थों के यथाविधि सेवन से वह अपने गर्भ का पोषण करने लगी। बालक पर गर्भ के समय संस्कारों का अपूर्व प्रभाव होता है। विशेषतः जो प्रभाव उस पर उस की माता की भावनाओं का पड़ता है, वह तो बड़ा विलक्षण होता है। तात्पर्य यह है कि माता की अच्छी या बुरी जैसी भी भावनाएं होंगी, गर्भस्थ जीव पर वैसे ही संस्कार अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेंगे। बालक के जीवन का निर्माण गर्भ से ही प्रारम्भ हो जाता है, अतः गर्भवती माताओं को विशेष सावधान रहने की आवश्यकता होती है। भारतीय सन्तान की दुर्बलता के कारणों में से एक कारण यह भी है कि गर्भ के पालन-पोषण और उस पर पड़ने वाले संस्कारों के विषय में बहुत कम ध्यान रखा जाता है। गर्भधारण के पश्चात् पुरुषसंसर्ग न करना, वासना-पोषक प्रवृत्तियों से अलग रहना, मानस को हर तरह से स्वच्छ एवं निर्मल बनाए रखना ही स्त्री के लिए हितावह होता है, परन्तु इन बातों का बहुत कम स्त्रियां ध्यान रखती हैं। उसी का यह दूषित परिणाम है कि आजकल के बालक दुर्बल, अल्पायुषी और बुरे संस्कारों वाले पाए जाते हैं। परन्तु महारानी धारिणी इन सब बातों को भली भान्ति जानती थी। अतएव वह गर्भस्थ शिशु के जीवन के निर्माण एवं कल्याण का ध्यान रखती हुई अपने मानस को दूषित प्रवृत्तियों से सदा सुरक्षित रख रही थी। - तदनन्तर लगभग नवमास के परिपूर्ण होने पर उसने एक सर्वांगसुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया। जातकर्मादि संस्कारों के कराने से उस नवजात शिशु का "सुबाहुकुमार" ऐसा गुणनिष्पन्न नाम रक्खा / तत्पश्चात् दूध पिलाने वाली क्षीरधात्री, स्नान कराने वाली मज्जनधात्री, वस्त्राभूषण द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [797
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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