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________________ के रूप में तपस्विराज श्री वैश्रमणदत्त जी महाराज का पारणा कराया था। वर्तमान भव में भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में दीक्षित हो संयम के आराधन से सिद्ध पद उपलब्ध किया ५-जिनदास-आप सौगन्धिकनरेश महाराज अप्रतिहत के पौत्र थे। पिता का नाम श्री महाचन्द्र तथा माता का नाम श्री अर्हदत्ता देवी था। महाराज मेघरथ के भव में आप ने श्री सुधर्मा स्वामी प्रतिलाभित किए थे। वर्तमान भव में भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में दीक्षित हुए और संयम आराधन से आप ने निर्वाणपद प्राप्त किया। ६-धनपति-आप कनकपुरनरेश महाराज प्रियचन्द के पौत्र थे। आप की पूज्य दादी का नाम श्री सुभद्रादेवी था। आप के पिता का नाम श्री वैश्रमणदत्त था। माता श्रीदेवी थी। पूर्वभव में आप ने तपस्विराज श्री संभूतविजय मुनिराज को भावनापुरस्सर दान दिया था। वर्तमान भव में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास दीक्षित हो निर्वाणपद प्राप्त किया। ७-महाबल-महापुरनरेश महाराज बल के आप पुत्र थे। आप की माता का नाम सुभद्रादेवी था। रक्तवतीप्रमुख 500 राजकुमारियों के साथ आप का विवाह सम्पन्न हुआ था। नागदत्त गाथापति के भव में आप ने तपस्विराज श्री इन्द्रदत्त मुनिवर्य का पारणा करा कर संसार को परिमित किया था। वर्तमान भव में भगवान महावीर स्वामी के पवित्र चरणों में साधु बन कर उस के यथाविधि आराधन से मुक्ति प्राप्त की। ८-भद्रनन्दी-आप के पूज्य पिता का नाम सुघोषनरेश महाराज अर्जुन था और मातेश्वरी दत्तवती जी थीं। आप का 500 राजकुमारियों के साथ विवाह हुआ था, उन में श्रीदेवी मुख्य थी। श्री धर्मघोष के भव में आप ने श्री धर्मसिंह मुनिराज को निर्दोष एवं शुद्ध भावों के साथ आहार पानी देकर, पारणा करा कर अपने संसारभ्रमण को परिमित किया था। वर्तमान भव में भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में दीक्षित हो कर सिद्ध पद को प्राप्त किया। प्रस्तुत द्वितीय श्रुतस्कन्धीय द्वितीय अध्याय के भद्रनन्दी इन से भिन्न थे। जन्मस्थान तथा माता पिता आदि की भिन्नता ही इन के पार्थक्य को प्रमाणित कर रही है। ९-महाचन्द्र-आप का जन्म चम्पा नगरी में हुआ था, पिता का नाम महाराज दत्त तथा माता का दत्तवती था। श्रीकान्ता जिन में प्रधान थी ऐसी 500 राजकन्याओं के साथ आप का पाणिग्रहण हुआ था। चिकित्सिकानरेश महाराज जितशत्रु के भव में आप ने तपस्विराज श्री धर्मवीर्य का पारणा करा कर अपने भविष्य को उन्नत बनाते हुए मनुष्यायु का बन्ध किया और वर्तमान भव में भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में दीक्षित हो कर साधुधर्म के सम्यक् आराधन से परम साध्य निर्वाण पद को प्राप्त किया। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [789
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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