________________ १०-वरदत्त-आप के पूज्य पिता का नाम साकेतनरेश महाराज मित्रनन्दी था। माता श्रीकान्तादेवी थी। आप का जिन 500 राजकुमारियों के साथ पाणिग्रहण हुआ था, उन में वरसेना राजकुमारी प्रधान थी, अर्थात् यह आप की पट्टरानी थी। शतद्वारनरेश महाराज विमलवाहन के भव में आप ने तपस्विराज श्री धर्मरुचि जी महाराज का विशुद्ध परिणामों से पारणा करा कर संसार को परिमित करने के साथ साथ मनुष्यायु का बन्ध किया था। वर्तमान भव में चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी के पवित्र चरणों में साधुव्रत धारण कर तथा उस के सम्यक् पालन से कालमास में काल करके सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न हुए। वर्तमान में आप दैविक संसार में अपने पुण्यमय शुभ कर्मों का सुखोपभोग कर रहे हैं। वहां से च्यव कर आप 11 भव करेंगे और अन्त में महाविदेह क्षेत्र में दीक्षित हो कर जन्म-मरण का अन्त कर डालेंगे। सिद्ध, बुद्ध, अजर और अमर हो जाएंगे। द्वितीय श्रुतस्कन्ध सुखविपाक के पूर्वोक्त दश अध्ययनों में महामहिम श्री सुबाहुकुमार जी आदि समस्त महापुरुषों का ही जीवन वृत्तान्त क्रमशः प्रस्तावित हुआ है, इसीलिए सूत्रकार ने सुबाहुकुमार आदि के नामों पर अध्ययनों का नामकरण किया है, जो कि उचित ही है। ___ आर्य जम्बू स्वामी के "- भदन्त ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक का क्या अर्थ वर्णन किया है, अर्थात् उस में किन-किन महापुरुषों का जीवनवृत्तान्त उपन्यस्त हुआ है-" इस प्रश्न के उत्तर में आर्य सुधर्मा स्वामी ने "-सुखविपाक में भगवान् ने श्री सुबाहुकुमार, श्री भद्रनन्दी आदि दश अध्ययन फ़रमाये हैं, तात्पर्य यह है कि इन दश महापुरुषों के जीवनवृत्तान्तों का उल्लेख किया है-" यह उत्तर दिया था, परन्तु इतने मात्र से प्रश्नकर्ता श्री जम्बू स्वामी की जिज्ञासा पूर्ण नहीं होने पाई, अतः फिर उन्होंने विनम्र शब्दों में अपने परमपूज्य गुरुदेव श्री सुधर्मा स्वामी के पावन चरणों में निवेदन किया। वे बोले-भगवन् ! यह ठीक है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के दश अध्ययन फ़रमाये हैं, परन्तु उस के सुबाहुकुमार नामक प्रथम अध्ययन का उन्होंने क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? इस प्रश्न के उत्तर में आर्य सुधर्मा स्वामी ने जो कुछ फरमाया, उस का वर्णन अग्रिम सूत्र में किया गया है। लोकोत्तर ज्ञान, दर्शन आदि गुणों के गण अर्थात् समूह को धारण करने वाले तथा जिनेन्द्र प्रवचन की पहले पहल सूत्ररूप में रचना करने वाले महापुरुष गणधर कहलाते हैं। चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के-१-इन्द्रभूति,२-अग्निभूति,३-वायुभूति, ४-व्यक्तस्वामी, ५-सुधर्मा स्वामी, ६-मण्डितपुत्र, ७-मौर्यपुत्र, ८-अकम्पित, ९अचलभ्राता, १०-मेतार्य, ११-प्रभास-ये 11 गणधर थे। ये सभी वैदिक विद्वान् ब्राह्मण थे। अपने-अपने मत की पुष्टि के लिए शास्त्रार्थ करने के लिए भगवान् महावीर के पास आये 790 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध