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________________ वर्णन किये हैं, जिन का नाम निर्देश इस प्रकार है १-सुबाहु, २-भद्रनन्दी, ३-सुजात, ४-सुवासव,५-जिनदास,६-धनपति,७-महाबल, ८-भद्रनन्दी, ९-महाचन्द्र और १०-वरदत्त / पूज्य श्री सुबाहुकुमार आदि महापुरुषों का विस्तृत वर्णन तो यथास्थान अग्रिम पृष्ठों पर किया जाएगा, परन्तु संक्षेप में इन महापुरुषों का यहां परिचय करा देना उचित प्रतीत होता १-सुबाहुकुमार-यह हस्तिशीर्ष नगर के स्वामी महाराज अदीनशत्रु और माता श्री धारिणी के पुत्र थे। ये 72 कला के जानकार थे। पुष्पचूला जिनमें प्रधान थी ऐसी 500 उत्तमोत्तम राजकन्याओं के साथ इन का विवाह सम्पन्न हुआ था। प्रथम भगवान् महावीर स्वामी से श्रावक के बारह व्रत धारण किये थे। फिर उन्हीं के चरणों में दीक्षित हो कर संयम का आराधन कर के देवलोक में उत्पन्न हुए। वर्तमान में आप देवलोक में विराजमान हैं। वहां से च्यव कर आप 11 भव करते हुए अन्त में मुक्ति को प्राप्त कर लेंगे। प्रस्तुत सुखविपाकीय प्रथम अध्ययन में आप श्री का ही जीवन प्रस्तावित हुआ है। पूर्व के भव में आप ने श्री सुदत्त तपस्विराज को आहार दे कर संसार परिमित किया था और मनुष्यायु का बन्ध किया था। २-भद्रनन्दी-ये ऋषभपुर नामक नगर में उत्पन्न हुए थे। इन के पूज्य पिता का नाम महाराज धनावह तथा माता का नाम महारानी सरस्वती था। पूर्व के भव में श्री युगबाहु तीर्थंकर को आहारदान दे कर इन्होंने अपना भविष्य उन्नत बनाया था। वर्तमान में पतितपावन महावीर स्वामी के नेतृत्व में इन के जीवन का निर्माण हुआ। संयमाराधन से आप देवलोक में गये। वहां से च्यव कर 11 भव करते हुए निर्वाणपद प्राप्त करेंगे। ३-सुजात-इन्होंने वीरपुर नामक नगर को जन्म लेकर पावन किया था। पिता का नाम वीरकृष्णमित्र और माता का नाम श्रीदेवी था। जिन में राजकुमारी बालश्री मुख्य थी, ऐसी 500 राजकन्याओं के साथ आप का पाणिग्रहण हुआ था। पूर्व के भव में आप इषुकार नामक नगर में ऋषभदत्त गाथापति के रूप में थे और वहां आप ने तपस्विराज मुनिपुङ्गव श्री पुष्पदन्त जी जैसे सुपात्र को भावनापूर्वक आहारदान दे कर संसारभ्रमण परिमित और मनुष्यायु का बन्ध किया था। वर्तमान भव में पतितपावन वीर प्रभु के चरणों में दीक्षित हुए और देवलोक में उत्पन्न हुए, वहां से च्यव कर 11 भव करते हुए अन्त में मुक्ति में विराजमान हो जाएंगे। , ४-सुवासव-आप ने विजयपुर नगर में जन्म लिया था। महाराज वासवदत्त आप के पूज्य पिता थे। महारानी कृष्णादेवी आप की मातेश्वरी थी। आप का जिन 500 राजकुमारियों, के साथ पाणिग्रहण हुआ था, उन में भद्रादेवी प्रधान थी। पूर्वभव में आप ने महाराज धनपाल 788 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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