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________________ २८-अप्रतिहतज्ञानदर्शनधर-अप्रतिहत का अर्थ है-किसी से बाधित न होने वाला, किसी से न रुकने वाला। ज्ञान, दर्शन के धारक को ज्ञानदर्शनधर कहते हैं। तब भगवान् महावीर स्वामी अप्रतिहत ज्ञान, दर्शन के धारण करने वाले थे, यह अर्थ फलित हुआ। २९-व्यावृत्तछम-छद्म शब्द के-१-आवरण और २-छल, ऐसे दो अर्थ होते हैं। ज्ञानावरणीय आदि चार घातक कर्म आत्मा की ज्ञान, दर्शन आदि मूल शक्तिओं को आच्छादित किए अर्थात् ढके हुए रहते हैं, इस लिए वे छद्म कहलाते हैं। जो छद्म से अर्थात् ज्ञानावरणीय आदि चार घातक कर्मों से तथा छल से अलग हो गया है, उसे व्यावृतछद्म कहते हैं। भगवान् महावीर छद्म से रहित थे। ३०-जिन-राग और द्वेष आदि आत्मसन्बन्धी शत्रुओं को पराजित करने वाला, उन का दमन करने वाला जिन कहलाता है। ३१-ज्ञायक-सम्यक् प्रकार से जानने वाला ज्ञायक कहलाता है। तात्पर्य यह है कि भगवान् राग आदि विकारों के स्वरूप को जानने वाले थे। रागादि विकारों को जान कर ही जीता जा सकता है। - कहीं-जावएणं-ऐसा पाठ भी उपलब्ध होता है। जापक का अर्थ है-जिताने वाला। अर्थात् भगवान् स्वयं भी रागद्वेषादि को जीतने वाले थे और दूसरों को भी जिताने वाले थे। . ३२-तीर्ण-जो स्वयं संसार सागर से तर गया है, वह तीर्ण कहलाता है। ३३-तारक-जो दूसरों को संसारसागर से तराने वाला है, उसे तारक कहते हैं। . भगवान् महावीर स्वामी ने अर्जुनमाली आदि अनेकानेक भव्य पुरुषों को संसारसागर से तारा था। .. ३४-बुद्ध-जो सम्पूर्ण तत्त्वों के बोध को उपलब्ध कर रहा हो, वह बुद्ध कहलाता ३५-बोधक-जो दूसरों को जीव, अजीव आदि तत्त्वों का बोध देने वाला हो, उसे बोधक कहते हैं। जीव आदि तत्त्वों का बोध देने के कारण भगवान् को बोधक कहा गया है। ३६-मुक्त-जो स्वयं कर्मों से मुक्त है, अथवा-जो बाह्य और आभ्यन्तर दोनों प्रकार की ग्रन्थियों गांठों-से रहित हो, उसे मुक्त कहा जाता है। भगवान महावीर स्वामी आभ्यन्तर और बाह्य ग्रन्थियों से रहित थे। ३७-मोचक-जो दूसरों को कर्मों के बन्धनों से मुक्त करवाता है, उसे मोचक कहते ३८-सर्वज्ञ-चर और अचर सभी पदार्थों का ज्ञान रखने वाला और जिस में अज्ञान प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [777
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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