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________________ वाहमपुणरावित्तिसिद्धिगइनामधेयं ठाणं-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। श्रमण आदि पदों का अर्थ निम्नोक्त है. १-श्रमण-तपस्वी अथवा प्राणिमात्र के साथ समतामय-समान व्यवहार करने वाले को श्रमण कहते हैं। २-भगवान्-जो ऐश्वर्य से सम्पन्न और पूज्य होता है, वह भगवान् कहलाता है। . ३-महावीर-जो अपने वैरियों का नाश कर डालता है, उस विक्रमशाली पुरुष को वीर कहते हैं। वीरों में भी जो महान् वीर है, वह महावीर कहलाता है। प्रस्तुत में यह भगवान् वर्धमान का नाम है, जो कि उन के देवाधिकृत संकटों में सुमेरु की तरह अचल रहने तथा घोर परीषहों और उपसर्गों के आने पर भी क्षमा का त्याग न करने के कारण देवताओं ने रखा था। आगे कहे जाने वाले आदिकर आदि सभी विशेषण भगवान् महावीर के ही हैं। ४-आदिकर-आचारांग आदि बारह अंगग्रन्थ श्रुतधर्म कहे जाते हैं। श्रुतधर्म के अदिकर्ता अर्थात् आद्य उपदेशक होने के कारण भगवान् महावीर को आदिकर कहा गया है। ५-तीर्थंकर-जिस के द्वारा संसाररूपी मोह माया का नद सुविधा से तिरा जा सकता है, उसे तीर्थ कहते हैं और धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाला तीर्थंकर कहलाता है। ६-स्वयंसम्बुद्ध-अपने आप प्रबुद्ध होने वाला, अर्थात् क्या ज्ञेय है, क्या उपादेय है और क्या उपेक्षणीय है (उपेक्षा करने योग्य) है-यह ज्ञान जिसे स्वतः ही प्राप्त हुआ है वह स्वयंसंबुद्ध कहा जाता है। ७-पुरुषोत्तम-जो पुरुषों में उत्तम-श्रेष्ठ हो, उसे पुरुषोत्तम कहते हैं, अर्थात् भगवान् के क्या बाह्य और क्या आभ्यन्तर, दोनों ही प्रकार के गुण अलौकिक होते हैं, असाधारण होते हैं, इसलिए वे पुरुषोत्तम कहलाते हैं। . ८-पुरुषसिंह-भगवान महावीर पुरुषों में सिंह के समान थे। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार मृगराज सिंह अपने बल और पराक्रम के कारण निर्भय रहता है, कोई भी पशु वीरता में उस का सामना नहीं कर सकता, उसी प्रकार भगवान् महावीर भी संसार में निर्भय रहते थे, तथा कोई भी संसारी प्राणी उन के आत्मबल, तप और त्याग संबन्धी वीरता की बराबरी नहीं कर सकता था। ९-पुरुषवरपुंडरीक-पुण्डरीक श्वेत कमल का नाम है। दूसरे कमलों की अपेक्षा श्वेत कमल, सौन्दर्य एवं सुगन्ध में अत्यन्त उत्कृष्ट होता है। हजारों कमल भी उस की सुगन्धि की बराबरी नहीं कर सकते। भगवान् महावीर पुरुषों में श्रेष्ठ श्वेत कमल के समान थे अर्थात् भगवान् मानव-सरोवर में सर्वश्रेष्ठ कमल थे। उन के आध्यात्मिक जीवन की सुगन्ध अनन्त प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [773
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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