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________________ सोहम्मे- ये पद पंचमाध्याय में पढ़े गए-२(बुझिहित्ता)अगाराओ अणगारियं पव्वइहिइसे लेकर-कप्पे देवत्ताए उववजिहिइ-इन पदों के परिचायक हैं। ___-महाविदेहे जहा पढमे जाव सिज्झिहिइ-अर्थात् अंजूश्री का जीव देवलोक से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा, उस का अवशिष्ट वर्णन प्रथम अध्ययन में वर्णित मृगापुत्र की तरह समझ लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि सूत्रकार ने -"जहा पढमे"-यहां प्रयुक्तयथा तथा प्रथम- इन शब्दों का ग्रहण कर प्रथमाध्ययन में वर्णित मृगापुत्र की ओर संकेत किया है, और जो "-अंजू श्री के जीव का महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होने के अनन्तर मोक्षपर्यन्त जीवनवृत्तान्त मृगापुत्र की भान्ति जानना चाहिए-" इन भावों का परिचायक है। तथा महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष जाने तक के कथावृत्त को सूचित करने वाले पाठ का बोधक जाव-यावत् पद है। यावत् पद से बोधित होने वाला-वासे जाइं कुलाइं भवन्ति अड्ढाइं-से लेकर-वत्तव्वया जाव-यहां तक का पाठ पंचमाध्याय में लिखा जा चुका है। __-सिज्झिहिति जाव अन्तं काहिति-यहां पठित जावत्-यावत् पद से-बुझिहिति मुच्चिहिति, परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। सिज्झिहिति इत्यादि पदों का अर्थ निम्नोक्त है १-सिज्झिहिति-सब तरह से कृतकृत्य हो जाने के कारण सिद्ध पद को प्राप्त करेगा। २-बुझिहिति-केवलज्ञान के आलोक से सकल लोक और अलोक का ज्ञाता होगा। ३-मुच्चिहिति-सर्व प्रकार के ज्ञानावरणीय आदि अष्टविध कर्मों से विमुक्त हो जाएगा। ४-परिणिव्वाहिति-समस्त कर्मजन्य विकारों से रहित हो जाएगा। ५-सव्वदुक्खाणमंतं काहिति-मानसिक, वाचिक और कायिक सब प्रकार के दुःखों का अन्त कर डालेगा, अर्थात् अव्याबाध सुख को उपलब्ध कर लेगा। -समणेणं जाव सम्पत्तेणं-यहां पठित जाव-यावत् पद से-भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयं संबुद्धेणं पुरिसुत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपुण्डरीएणं पुरिसवरगन्धहत्थिणा लोगुत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं बोहिदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायएणं धम्मसारहिणा धम्मवरचउरंतचक्कवट्टिणा दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा अप्पडिहयवरनाणदंसणधरेणं वियदृच्छउमेणं जिणेणं जाणएणं तिण्णेणं तारएणं बुद्धेणं. बोहएणं मुत्तेणं मोयएणं सव्वण्णुणा सव्वदरिसिणा सिवमयलमरुअमणंतमख्यमव्वा 772 ] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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