________________ वहां पर भी उसके दुष्कर्म उस का पीछा नहीं छोड़ेंगे। वह शाकुनिकों-पक्षिघातकों के हाथों मृत्यु को प्राप्त हो कर उसी नगर के एक धनी परिवार में उत्पन्न होगा। वहां युवावस्था को प्राप्त कर विकास-मार्ग की ओर प्रस्थित होता हुआ वह विशिष्ट संयमी मुनिराजों के सम्पर्क में आकर सम्यक्त्व को उपलब्ध करेगा। अन्त में साधुधर्म में दीक्षित होकर कर्मबन्धनों के तोड़ने का प्रयास करेगा। जीवन के समाप्त होने पर वह सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में देवस्वरूप से उत्पन्न होगा। वहां के दैविक सुखों का उपभोग करेगा। इतना कह कर भगवान् मौन हो गए। तब गौतम स्वामी ने फिर पूछा कि भगवन् ! देवभवसम्बन्धी आयु को पूर्ण कर अंजूश्री का जीव कहाँ जाएगा और कहाँ उत्पन्न होगा? इसके उत्तर में भगवान् बोले-गौतम! महाविदेह क्षेत्र के एक कुलीन घर में वह जन्मेगा, वहां संयम की सम्यक् आराधना से कर्मों का आत्यंतिक क्षय करके सिद्धगति को प्राप्त होगा। तात्पर्य यह है कि यहां आकर उस की जीवनयात्रा का पर्यवसान हो जाएगा। . सौधर्म देवलोक में अंजूश्री के जीव की उत्पत्ति बता कर मौन हो जाने और गौतम स्वामी के दोबारा पूछने पर उस की अग्रिम यात्रा का वर्णन करने से यही बात फलित होती है कि स्वर्ग में गमन करने पर भी आत्मा की सांसारिक यात्रा समाप्त नहीं हो जाती। वहां से च्यव कर उसे कहीं अन्यत्र उत्पन्न होकर अपनी जीवनयात्रा को चालू रखना ही पड़ता है। अन्त में आर्य सुधर्मा स्वामी अपने प्रिय शिष्य जम्बू स्वामी से कहने लगे-जम्बू ! पतितपावन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के अंजूश्री नामक दसवें अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है। मैंने भगवान् से जैसा श्रवण किया है वैसा ही तुम को सुना दिया है। इस में मेरी निजी कल्पना कुछ नहीं है। आर्य सुधर्मा स्वामी के उक्त वचनामृत का कर्णपुटों द्वारा सम्यक् पान कर संतृप्त हुए जम्बू स्वामी आर्य सुधर्मा स्वामी के पावन चरणों में सिर झुकाते हुए गद्गद् स्वर में कह उठते हैं-"सेवं भंते ! सेवं भंते !" अर्थात् भगवन् ! जो कुछ आपने फरमाया है, वह सत्य है, यथार्थ -णेयव्वं जाव वणस्सइ०-यहां का जाव-यावत् पद प्रथमाध्याय में पढ़े गए-सा णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सरीसवेसु उववजिहिइ।तत्थणं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीएसे लेकर-तेइंदिएसु बेइन्दिएसु-यहां तक के पदों का, तथा-वणस्सइ०-यहां का बिन्दुकडुयरुक्खेसु कडुयदुद्धिएसु...अणेगसतसहसक्खुत्तो उववजिहिइ-इन पदों का परिचायक है। तथा उम्मुक्कबालभावे०-यहां का बिन्दु-जोव्वणगमणुपत्ते विण्णायपरिणयमेत्ते-इन पदों का परिचायक है। इन का अर्थ छठे अध्याय में लिखा जा चुका है। तथा-पव्वजा. प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [771