SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 778
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तथा कटुदुग्ध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी, वहां की भवस्थिति को पूर्ण कर वह सर्वतोभद्र नगर में मयूर-मोर के रूप में उत्पन्न होगी।वहां वह मोर पक्षिघातकों के द्वारा मारा जाने पर उसी सर्वतोभद्र नगर के एक प्रसिद्ध श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। वहां बालभाव को त्याग, यौवन अवस्था को प्राप्त तथा विज्ञान की परिपक्व अवस्था को उपलब्ध करता हुआ वह 'तथारूप स्थविरों के समीप बोधिलाभसम्यक्त्व को प्राप्त करेगा। तदनन्तर प्रव्रज्या-दीक्षा ग्रहण करके, मृत्यु के बाद सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा। गौतम-भगवन् ! देवलोक की आयु तथा स्थिति पूरी होने के बाद वह कहाँ जाएगा? कहां उत्पन्न होगा? भगवान्-गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जाएगा और वहां उत्तम कुल में जन्म लेगा, जैसे कि प्रथम अध्ययन में वर्णन किया गया है, यावत् सर्व दुःखों से रहित हो जाएगा। हे जम्बूं ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के दशवें अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। - जम्बू-भगवन् ! आप का यह कथन सत्य है, परम सत्य है। ॥दशम अध्ययन सम्पूर्ण॥ ॥दुःखविपाकीय प्रथम श्रुतस्कन्ध समाप्त॥ टीका-परमदुःखिता अंजूदेवी के भावी भवों को गौतम स्वामी द्वारा प्रस्तुत की गई जिज्ञासा की पूर्ति में भगवान् ने जो कुछ फरमाया है, उस का उल्लेख ऊपर मूलार्थ में किया जा चुका है, जो कि सुगम होने से अधिक विवेचन की अपेक्षा नहीं रखता। .. महापुरुषों की जिज्ञासा भी रहस्यपूर्ण होती है, उस में स्वलाभ की अपेक्षा परलाभ को बहुत अवकाश रहता है। अंजूदेवी के विषय में उस के अतीत, वर्तमान और भावी जीवन के विषय में जो कुछ पूछा है, तथा उस के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया है, उस का ध्यानपूर्वक अवलोकन और मनन करने से विचारशील व्यक्ति को मानव जीवन के उत्थान के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध होते हैं / इस के अतिरिक्त आत्मशुद्धि में प्रतिबन्धरूप से उपस्थित होने वाले काम, मोह आदि कारणों को दूर करने में साधक को जिस बल एवं साहस की आवश्यकता होती है, उस की काफी सामग्री इस में विद्यमान है। . मूलगत "एवं संसारो जहा पढमो, जहा णेयव्वं"-इस उल्लेख से सूत्रकार ने मृगापुत्र नामक प्रथम अध्ययन को सूचित किया है। अर्थात् जिस प्रकार विपाकसूत्रगत प्रथम .. 1. तथारूप स्थविर का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह प्रथमाध्याय में किया जा चुका है। 'प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [769
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy