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________________ महाविदेहे यथा प्रथमः यावत् सेत्स्यति, यावद् अन्तं करिष्यति। एवं खलु जम्बू ! ' श्रमणेन यावत् सम्प्राप्तेन दु:खविपाकानां दशमस्याध्ययनस्यायमर्थः प्रज्ञप्तः। तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! // दुःखविपाकेषु दशस्वध्ययनेषु प्रथमः श्रुतस्कन्धः समाप्तः॥ पदार्थ-गोतमा ! हे गौतम ! अजू णं देवी-अंजू देवी। नउइं-नवति (90) / वासाइं-वर्षों की। परमाउं-परम आयु। पालइत्ता-पाल कर। कालमासे-कालमास में। कालं किच्चा-काल करके। इमीसे-इस। रयणप्पभाए-रत्नप्रभा नामक। पुढवीए-पृथिवी में। णेरइयत्ताए-नारकीयरूप से। उववजिहिइ-उत्पन्न होगी। एवं-इस प्रकार। संसारो-संसारभ्रमण। जहा-जैसे। पढमो-प्रथम अध्ययन में प्रतिपादन किया है। तहा-तथा-उसी तरह।णेयव्वं-जानना चाहिए। जाव-यावत्।वणस्सति-वनस्पतिगत निम्बादि कटुवृक्षों तथा कटु दुग्ध वाले अर्कादि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। सा णं-वह / ततो -वहां से।अणंतरं-व्यवधानरहित। उव्वट्टित्ता-निकल कर। सव्वओभद्दे-सर्वतोभद्र / णगरे-नगर में। मयूरत्ताए- ' मयूर-मोर के रूप में। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगी। से णं-वह मोर। तत्थ-वहां पर। साउणिएहिशाकुनिकों-पक्षिघातक शिकारियों के द्वारा ।वधिते समाणे-वध किया जाने पर।तत्थेव-उसी।सव्वओभद्देसर्वतोभद्र। णगरे-नगर में। सेट्ठिकुलंसि-श्रेष्ठिकुल में। पुत्तत्ताए-पुत्ररूप से। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा। से णं-वह। तत्थ-वहां पर। उम्मुक्कबालभावे-बालभाव को त्याग कर-यौवनावस्था को प्राप्त हुए तथा विज्ञान की परिपक्व अवस्था को प्राप्त किए हुए। तहारूवाणं-तथारूप। थेराणं-स्थविरों के। अंतिए-समीप। केवलं-केवल अर्थात् शंका, आकांक्षा आदि दोषों से रहित। बोधिं-बोधि (सम्यक्त्व) को। बुज्झिहिति-प्राप्त करेगा, तदनन्तर। पव्वजा-प्रव्रज्या ग्रहण करेगा, उस के अनन्तर। सोहम्मे०सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। ततो-तदनन्तर / देवलोगाओ-वहां की अर्थात देवलोक की। आउक्खएणं-आयु पूर्ण कर। कहिं-कहां। गच्छिहिति ?-जाएगा? कहिं-कहां? उववजिहिइ?उत्पन्न होगा? गोतमा !-हे गौतम! महाविदेहे-महाविदेह क्षेत्र में (जाएगा और वहां उत्तम कल में जन्मेगा)। जहा पढमे-जैसे प्रथम अध्ययन में वर्णन किया है, तद्वत्। जाव-यावत् / सिज्झिहिति-सिद्ध पद को प्राप्त करेगा। जाव-यावत्। अंतं काहिति-सर्व दु:खों का अन्त करेगा। एवं-इस प्रकार। खलुनिश्चय ही। जम्बू !-हे जम्बू ! समणेणं-श्रमण। जाव-यावत्। संपत्तेणं-सम्प्राप्त ने। दुहविवागाणंदुःखविपाक के। दसमस्स-दसवें। अज्झयणस्स-अध्ययन का। अयमढे-यह अर्थ। पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है। भंते !-हे भगवन् ! सेवं-वह इसी प्रकार है। भंते !-हे भगवन् ! सेवं-वह इसी प्रकार है। दुहविवागेसु-दुःखविपाक के। दससु-दस। अज्झयणेसु-अध्ययनों में। पढमो-प्रथम। सुयक्खंधोश्रुतस्कन्ध। समत्तो-सम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-हे गौतम ! अंजूदेवी 90 वर्ष की परम आयु को भोग कर कालमास में काल करके इस रत्नप्रभा नामक पृथ्वी में नारकीयरूप से उत्पन्न होगी। उस का शेष संसारभ्रमण प्रथम अध्ययन की तरह जानना चाहिए, यावत् वनस्पतिगत निम्बादि कटुवृक्षों 768 ] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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