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________________ अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि। अर्थात्-हे जम्बू ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के नवम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। सारांश यह है कि भगवान् महावीर ने अनगार गौतम स्वामी के प्रति जो देवदत्ता का आद्योपान्त जीवनवृत्तान्त सुनाया है, यही नवम अध्ययन का अर्थ है, जिस का वर्णन मैं अभी तुम्हारे समक्ष कर चुका हूँ, परन्तु इसमें इतना ध्यान रहे कि यह जो कुछ भी मैंने तुम को सुनाया है, वह मैंने वीर प्रभु से सुना हुआ ही सुनाया है, इस में मेरी अपनी कोई कल्पना नहीं। प्रस्तुत अध्ययन में विषयासक्ति के दुष्परिणाम का दिग्दर्शन कराया गया है। कामासक्त व्यक्ति पतन की ओर कितनी शीघ्रता से बढ़ता है और किस हद तक अनर्थ करने पर उतारू हो जाता है तथा परिणामस्वरूप उसे कितनी भयंकर यातनाएं भोगनी पड़ती हैं, इत्यादि बातों का इस कथासन्दर्भ में सुचारु रूप से निदर्शन मिलता है। लाखों मनुष्यों पर शासन करने वाला सम्राट भी जघन्य विषयासक्ति से नरकगामी बनता है, तथा रूपलावण्य की राशि एक महारानी. भी अपनी अनुचित कामवासना की पूर्ति की कुत्सित भावना से प्रेरित हुई महान् अनर्थ का सम्पादन करके नरकों का आतिथ्य प्राप्त कर लेती है। इस पर से मानव में बढ़ी हुई कामवासना के दुष्परिणाम को देखते हुए उस से निवृत्त होने या पराङ्मुख रहने की समुचित शिक्षा मिलती है। कामवासना से वासित जीवन वास्तव में मानवजीवन नहीं किन्तु पशुजीवन बल्कि उस से भी गिरा हुआ जीवन होता है, अतः विचारशील पुरुषों को जहां तक बने वहां तक अपने जीवन को संयमित और मर्यादित बनाने का यत्न करना चाहिए, तथा विषयवासनाओं के बढ़े हुए जाल को तोड़ने की ओर अधिक लक्ष्य देना चाहिए, यही इस कथासंदर्भ का ग्रहणीय सार है। // नवम अध्याय समाप्त॥ 748 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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