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________________ की तरह आना जाना निरन्तर बना रहता है। विविध प्रकार की परिस्थितियों में गुज़रता हुआ यह जीवात्मा जिस समय बोधि-सम्यक्त्व का लाभ प्राप्त करता है, उस समय इसका उत्क्रान्ति मार्ग की ओर प्रस्थान करने का रुख होता है, वहीं से इस की ध्येयप्राप्ति का कार्य आरम्भ होता है। सम्यक्त्व की प्राप्ति के अनन्तर शुभ संयोगों के सन्निधान से प्रगति मार्ग की ओर प्रस्थान करने वाले साधक की आत्मा कर्मबन्धनों को तोड़ कर एक न एक दिन अपने वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त कर लेती है। वहां उसकी जन्म मरण परम्परा की विकट यात्रा का पर्यवसान हो जाता है और उसे शाश्वत सुख प्राप्त हो जाता है। यही इस कथा का सारांश है। -संसारो तहेव जाव वणस्सइ०-यहां पठित संसार शब्द-संसारभ्रमण, इस अर्थ का बोधक है। तथा तहेव-तथैव-पद वैसे ही अर्थात् जिस तरह प्रथम अध्ययन में राजकुमार मृगापुत्र का संसारभ्रमण वर्णित कर चुके हैं, वैसे ही देवदत्ता का भी संसारभ्रमण समझ लेनाइन भावों का परिचायक है। उसी संसारभ्रमण के संसूचक पाठ को जाव-यावत् पद से बोधित किया गया है, अर्थात् जाव-यावत् पद प्रथम अध्याय में पढ़े गए-सा णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सरीसवेसु उववजिहिति, तत्थ णं कालं किच्चा-से लेकर-तेइन्दिएसु, बेइन्दिएसु-यहां तक के पदों का परिचायक है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां पर मृगापुत्र का वर्णन है जब कि प्रस्तुत में देवदत्ता का। तथा-वणस्सइ-यहां के बिन्दु से-कडुयरुक्खेसु कडुयदुद्धिएसु अणेगसतसहस्सक्खुत्तो, उववजिहिति-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। अर्थात् निम्बादि कटु वृक्षों तथा कटु दुग्ध वाली अर्क आदि वनस्पति में लाखों बार जन्म मरण किया जाएगा। तथा "-सेट्टि बोहि सोहम्मे महाविदेहे सिज्झिहिति 5-" इन पदों में सेट्ठि-यहां के बिन्दु से-कुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिति-इन पदों का ग्रहण करना अभिमत है। तथा बोहिं० आदि पदों से विवक्षित पाठ चतुर्थ अध्याय में लिखा जा चुका है। . पाठकों को स्मरण होगा कि प्रस्तुत अध्ययन के प्रारम्भ में यह बतलाया गया था कि श्री जम्बू स्वामी ने अपने परम पूज्य गुरुदेव श्री सुधर्मा स्वामी से दुःखविपाक सूत्र के अष्टमाध्ययन को सुनने के अनन्तर नवम अध्ययन को सुनाने की अभ्यर्थना की थी, जिस पर श्री सुधर्मा स्वामी ने उन्हें नवम अध्ययन सुनाना आरम्भ किया था। उस अध्ययन की समाप्ति पर श्री सुधर्मा स्वामी ने श्री जम्बू अनगार से जो कुछ फरमाया, उसे सूत्रकार ने "निक्खेवो" इस पद से अभिव्यक्त किया है। निक्खेवो का संस्कृत प्रतिरूप निक्षेप होता है। निक्षेप का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह द्वितीय अध्ययन में किया जा चुका है। प्रस्तुत में निक्षेपशब्द से संसूचित सूत्रांश निनोक्त है एवं खलु जम्बू! समणेणं भगवया महावीरेणंजाव सम्पत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [747
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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