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________________ पालयित्ता-पाल कर-भोग कर। कालमासे-कालमास में-मृत्यु का समय आ जाने पर। कालं-काल। . किच्चा-करके / इमीसे-इस / रयणप्पभाए-रत्नप्रभा नाम की। पुढवीए-पृथ्वी-नरक में। उववजिहितिउत्पन्न होगी। संसारो-शेष संसारभ्रमण कर। वणस्सइ०-वनस्पतिगत निम्ब आदि कटुवृक्षों तथा कटु दुग्ध वाले अर्कादि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। ततो-वहां से। अणंतरं-अंतर रहित / उव्वट्टित्ता-निकल कर। गंगापुरे-गंगापुर। णगरे-नगर में। हंसत्ताए-हंसरूप से। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगी। से णं-वह हंस। तत्थ-वहां पर। साउणिएहि-शाकुनिकों-शिकारियों के द्वारा। वहिते-वध किया। समाणे-हुआ। तत्थेव-वहीं। गंगापुरे-गंगापुर में। सेट्ठि-श्रेष्ठिकुल में उत्पन्न होगा। बोहि-सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा। सोहम्मे०-सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां से। महाविदेहे-महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा, वहां से। सिज्झिहिति ५-सिद्धि प्राप्त करेगा, केवलज्ञान के द्वारा समस्त पदार्थों को जानेगा, सम्पूर्ण कर्मों से रहित हो जाएगा, सकल कर्मजन्य सन्ताप से विमुक्त हो जाएगा तथा सर्व प्रकार के दु:खों का अन्त कर डालेगा। णिक्खेवो-निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिए। णवमं-नवम। अझयणंअध्ययन। समत्तं-सम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-हे गौतम ! देवदत्ता देवी अशीति (80) वर्षों की परम आयु पाल कर कालमास में काल करके इस रत्नप्रभा नाम की पृथिवी-नरक में उत्पन्न होगी। शेष संसारभ्रमण पूर्ववत् करती हुई-प्रथम अध्ययनवर्ती मृगापुत्र की भांति यावत् वनस्पतिगत निम्ब आदि कटु वृक्षों में तथा कटु दुग्ध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी। वहां से अंतर रहित निकल कर गंगापुर नगर में हंसरूप से उत्पन्न होगी। वहां शाकुनिकों द्वारा वध किये जाने पर वह हंस उसी गंगापुर नगर में श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से जन्म लेगा, वहां सम्यक्त्व को प्राप्त कर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां चारित्र ग्रहण कर सिद्धि प्राप्त करेगा, केवल ज्ञान द्वारा समस्त पदार्थों को जानेगा, सम्पूर्ण कर्मों से विमुक्त हो जाएगा, समस्त कर्मजन्य सन्ताप से रहित हो जाएगा तथा सब दुःखों का अन्त करेगा। निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिए। ॥नवम अध्ययन समाप्त॥ टीका-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा वर्णित देवदत्ता के पूर्वजन्म सम्बन्धी वृत्तान्त को सुन लेने के बाद गौतम स्वामी को उसके आगामी भवों की जिज्ञासा हुई, तदनुसार उन्होंने भगवान् से उस के भावी जीवनवृत्तान्त का वर्णन करने की प्रार्थना की। गौतम स्वामी की प्रार्थना से भगवान् ने देवदत्ता के भावी जीवन के वृत्तान्त को सुनाते हुए जो कुछ कहा, उस का वर्णन मूलार्थ में किया जा चुका है। यह वर्णन भी प्रायः पूर्व वर्णन जैसा ही है, अतः यह अधिक विवेचन की अपेक्षा नहीं रखता। वास्तव में मानव जीवन एक पहेली है। उस में सुख दुःख की अवस्थाओं का घटीयंत्र 746 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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