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________________ देता है अर्थात् गौतम ! जैसे तुम ने देवदत्ता का स्वरूप देखा है, उस विधान से देवदत्ता हन्तव्या है, यह आज्ञा राजा पुष्यनन्दी की ओर से राजपुरुषों को दी जाती है। इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! देवदत्ता देवी पूर्वकृत पाप कर्मों का फल भोगती हुई विहरण कर रही है। ____टीका-दासियों के द्वारा राजमाता श्रीदेवी की मृत्यु का वृत्तान्त सुनने तथा उसकी परम प्रेयसी देवदत्ता द्वारा उसका वध किए जाने के समाचार ने रोहीतकनरेश पुष्यनन्दी की वही दशा कर दी जो कि सर्वस्व के लुट जाने पर एक साधारण व्यक्ति की होती है। माता की इस आकस्मिक और क्रूरतापूर्ण मृत्यु से उस के हृदय पर इतनी गहरी चोट लगी कि वह कुठार के आघात से काटी गई चम्पकवृक्ष की शाखा की भान्ति धड़ाम से पृथिवी पर गिर गया। उस का शरीर निश्चेष्ट होकर मुहूर्तपर्यन्त पृथिवी पर पड़ा रहा। उस के अंगरक्षक तथा दरबारी लोग चित्रलिखित मूर्ति की तरह निस्तब्ध हो खड़े के खड़े रह गए। अन्त में अनेक प्रकार के उपचारों से जब पुष्यनन्दी को होश आया तो वह फूट-फूट कर रोने लगा। मंत्रिगण तथा अन्य सम्बन्धिजनों के बार-बार आश्वासन देने पर उसे कुछ शान्ति मिली। तदनन्तर उसने राजोचित विधि से राजमाता का निस्सरण किया अर्थात् रोहीतकनरेश पुष्यनन्दी माता की अरथी निकालता है और दाहसंस्कार के अनन्तर विधिपूर्वक उसका मृतककर्म कराता है। पुष्यनन्दी ने अपनी पूज्य मातेश्वरी श्रीदेवी के शव के दाहसंस्कार आदि करने के अनंतर जब मातृघात करने वाली अपनी पट्टरानी देवदत्ता की ओर ध्यान दिया तो उसमें दुःख और क्रोध दोनों ही समानरूप से जाग उठे। दुःख इसलिए कि उसे अपनी पूज्य माता के वियोग की भान्ति देवदत्ता का वियोग भी असह्य था और क्रोध इस कारण कि उस की सहधर्मिणी ने वह काम किया कि जिस की उस से स्वप्न में भी सम्भावना नहीं की जा सकती थी। अन्त में उसे देवदत्ता के विषय में बड़ा तिरस्कार उत्पन्न हुआ। वह सोचने लगा-मेरी तीर्थ के समान पूज्य माता को इस भान्ति मारना और वह भी किसी विशेष अपराध से नहीं; किन्तु मैं उसकी सेवा करता हूँ केवल इसलिए। धिक्कार है ऐसी स्त्री को! धिक्कार है उस के ऐसे निर्दयतापूर्ण क्रूरकर्म को! क्या देवदत्ता मानवी है ? नहीं-नहीं साक्षात् राक्षसी है। रूपलावण्य के अन्दर छिपी हुई हलाहल है। अस्तु, जिसने मेरी पूज्य माता का इतनी निर्दयता से वध किया है, उसे भी संसार में रहने का कोई अधिकार नहीं। उसे भी उसके इस पैशाचिक कृत्य के अनुसार ही दण्ड दिया जाना चाहिए, यही न्याय है, यही धर्मानुप्राणित राजनीति है। इन विचारों से क्रोध के आवेश से महाराज पुष्यनन्दी का मुख लाल हो जाता है और वह अपने राजपुरुषों को देवदत्ता को पकड़ लाने का आदेश देता है, तथा आदेशानुसार पकड़ कर लाये जाने पर उसे प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [743
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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