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________________ महता मातृशोकेनाक्रांतः सन् परशुनिकृत्त इव चम्पकवरपादपो धसेति धरणीतले सर्वांगैः सन्निपतितः। ततः स पुष्यनन्दी राजा मुहूर्तान्तरे श्वस्तः सन् बहुभी राजेश्वर यावत् सार्थवाहै : मित्र यावत् परिजनेन च सार्द्धं रुदन् 3 श्रियो देव्याः महता ऋद्धिसत्कारसमुदयेन निस्सरणं करोति 2 आशुरुप्तः 4 देवदत्तां देवीं पुरा यावद् विहरति। पदार्थ-तते णं-तदनन्तर।से-वह। पूसणंदी-पुष्यनन्दी। राया-राजा। तासिं-उन।दासचेडीणंदास और चेटियों-दासियों के। अंतिए-पास से। एयमटुं-इस वृत्तान्त को। सोच्चा-सुन कर। निसम्मउस पर विचार कर। महया-महान्। मातिसोएणं-मातृशोक से। अप्फुण्णे समाणे-आक्रान्त हुआ। परसुनियत्ते-परशु-कुल्हाड़े से काटे हुए। चंपगवरपायवे-चम्पकवरपादप-श्रेष्ठ चम्पक वृक्ष की। विवतरह। धसत्ति-धस (गिरने की ध्वनि का अनुकरण), ऐसे शब्द से अर्थात् धड़ाम से। धरणीतलंसिपृथ्वीतल पर। सव्वंगेहि-सर्व अंगों से। संनिपडिते-गिर पड़ा। तते णं-तदनन्तर। से-वह। पूसणंदीपुष्यनन्दी। राया-राया। मुहत्तंतरेण-एक मुहूर्त के बाद। आसत्थे समाणे-आश्वस्त होने पर। बहूहिंअनेक / राईसर-राजा-नरेश, ईश्वर-ऐश्वर्ययुक्त / जाव-यावत्। सत्थवाहेहि-सार्थवाहों यात्री व्यापारियों के नायकों अथवा संघनायकों, और। मित्त-मित्र आदि। जाव-यावत्। परियणेण य-परिजन के। सद्धिं-साथ। रोयमाणे ३-रुदन, आक्रन्दन और विलाप करता हुआ। सिरीए देवीए-श्री देवी का। महता-महान्। इड्ढिसक्कारसमुदएणं-ऋद्धि तथा सत्कार समुदाय के साथ।नीहरणं करेति २-निष्कासनअरथी (सीढ़ी के आकार का ढांचा जिस पर मुर्दे को रख कर श्मशान ले जाते हैं) निकालता है, निकाल करके। आसुरुत्ते ४-क्रोध के आवेश में लाल पीला हुआ। देवदत्तं देविं-देवदत्ता देवी को। पुरिसेहिंराजपुरुषों से। गेण्हावेति २-पकड़वाता है, पकड़ा कर। एतेणं-इस। विहाणेणं-विधान से। वझं-यह वध्या-हन्तव्या है, ऐसी राजपुरुषों को। आणावेति-आज्ञा देता है। तं-अतः। एवं-इस प्रकार। खलुनिश्चय ही। गोतमा !-हे गौतम ! देवदत्ता-देवदत्ता। देवी-देवी। पुरा-पुरातन / जाव-यावत्। विहरतिविहरण कर रही है। मूलार्थ-तदनन्तर पुष्यनन्दी राजा उन दास और दासियों के पास से इस वृत्तान्त को सुन कर और विचार कर महान् मातृशोक से आक्रान्तं हुआ परशु से निकृत्त-काटे हुए चम्पक वृक्ष की भान्ति धस शब्द पूर्वक भूमि पर सम्पूर्ण अंगों से गिर पड़ा।तत्पश्चात् मुहूर्त के बाद वह पुष्यनन्दी राजा आश्वस्त हो-होश में आने पर राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह इन सब के साथ और मित्रों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों और परिजनों के साथ रुदन, क्रन्दन और विलाप करता हुआ महान् ऋद्धि एवं सत्कारसमुदाय से श्रीदेवी की अरथी निकालता है। तदनन्तर क्रोधातिरेक से लाल पीला हो वह देवदत्ता देवी को राजपुरुषों से पकड़ा कर इस विधान से वध्या-मारी जाए, ऐसी आज्ञा 742 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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