SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 750
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसी बात को विशेष स्पष्ट करने के लिए शास्त्र में और भी दो दृष्टान्त दिए गये हैं। पहला-गणितक्रिया का और दूसरा वस्त्र सुखाने का। जैसे कोई विशिष्ट संख्या का लघुतम छेद निकालना हो तो इस के लिए गणित प्रक्रिया में अनेक उपाय हैं / निपुण गणितज्ञ अभीष्ट फल ' लाने के लिए एक ऐसी रीति का उपयोग करता है, जिस से बहुत ही शीघ्र अभीष्ट परिणाम निकल आता है, दूसरा साधारण जानकार मनुष्य भागाकार आदि विलम्बसाध्य प्रक्रिया से उस अभीष्ट परिणाम को देरी से ला पाता है। ___ इसी तरह से समान रूप में भीगे हुए कपड़ों में से एक को समेट कर और दूसरे को फैलाकर सुखाया जाए, तो पहला देरी से और दूसरा जल्दी से सूखेगा। पानी का परिमाण और शोषणक्रिया समान होने पर भी कपड़े के संकोच और विस्तार के कारण उसके सूखने में देरी और जल्दी का फ़र्क पड़ जाता है। समान परिमाण से युक्त अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय आयु के भोगने में भी सिर्फ देरी और जल्दी का ही अन्तर पड़ता है और कुछ नहीं। इसलिए यहां कृत का नाश आदि उक्त दोष नहीं आते। उपरोक्त चर्चा से अकालमृत्यु और कालमृत्यु की समस्या अनायास ही सुलझाई जा सकती है, तथा दोनों प्रकार की मृत्यु का वर्णन शास्त्रसम्मत है। तब ही राजमाता श्रीदेवी की मृत्यु को अकालमृत्यु के नाम से प्रस्तुत सूत्रपाठ में अभिहित किया गया है। दास और दासियों के द्वारा राजमाता श्रीदेवी की हत्या का समाचार मिलने के अनन्तर महाराज पुष्यनन्दी के हृदय पर उस का क्या प्रभाव पड़ा और उसने क्या किया, अब अग्रिम सूत्र में उस का वर्णन करते हैं मूल-तते णं से पूसणंदी राया तासिं दासचेडीणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म महया मातिसोएणं अप्फुण्णे समाणे परसुनियत्ते विव चंपगवरपायवे धसत्ति धरणीतलंसि सव्वगेहि संनिपडिते।तते णं से पूसणंदी राया मुहुत्तंतरेणं आसत्थे समाणे बहूहिं राईसर० जाव सत्थवाहेहिं मित्त जाव परियणेण य सद्धिं रोयमाणे 3 सिरीए देवीए महता इड्ढिसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेति 2 आसुरुत्ते 4 देवदत्तं देविं पुरिसेहिं गेण्हावेति 2 एतेणं विहाणेणं वझं आणावेति। एवं खलु गोतमा ! देवदत्ता देवी पुरा जाव विहरति। छाया-ततः स पुष्यनन्दी राजा तासां दासचेटीनामन्तिके एतमर्थं श्रुत्वा निशम्य 1. औपपातिक-चरमदेहोत्तमपुरुषाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवर्त्यायुषः। (तत्त्वार्थसूत्र-अ० 2, सूत्र 52 के विवेचन में पंडितप्रवर श्री सुखलाल जी) प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [741
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy