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________________ होने के पहले ही अन्तर्मुहूर्त मात्र में भोग ली जाती है। आयु के इस शीघ्र भोग को ही अपवर्तना या अकालमृत्यु कहते हैं और नियतस्थितिक भोग को अनपवर्तना या कालमृत्यु कहते हैं। __ अपवर्तनीय आयु सोपक्रम-उपक्रमसहित होती है। तीव्र शस्त्र', तीव्र विष, तीव्र अग्नि आदि जिन निमित्तों से अकालमृत्यु होती है, उन निमित्तों का प्राप्त होना उपक्रम है। ऐसा उपक्रम अपवर्तनीय आयु में अवश्य होता है। क्योंकि वह आयु नियम से कालमर्यादा समाप्त होने के पहले ही भोगने के योग्य होती है, परन्तु अनपवर्तनीय आयु सोपक्रम और निरुपक्रम दो प्रकार की होती है अर्थात् उस आयु को अकालमृत्यु लाने वाले उक्त निमित्तों का सन्निधान होता भी है और नहीं भी होता, परन्तु उक्त निमित्तों का सन्निधान होने पर भी अनपवर्तनीय आयु नियत कालमर्यादा के पहले पूर्ण नहीं होती। सारांश यह है कि अपवर्तनीय आयु वाले प्राणियों को शस्त्र आदि का कोई न कोई निमित्त मिल ही जाता है, जिस से वे अकाल में ही मर जाते हैं और अनपवर्तनीय आयु वालों को कैसा भी प्रबल निमित्त क्यों न मिले, वे अकाल में नहीं मरते। प्रश्न-नियत काल मर्यादा से पहले आयु का भोग हो जाने से कृतनाश (किए हुए का नाश), अकृताभ्यागम (जो नहीं किया उस की प्राप्ति) और निष्फलता (फल का अभाव) दोष लगेंगे, जो शास्त्र में इष्ट नहीं, उन का निवारण कैसे होगा? उत्तर-शीघ्र भोग होने में उक्त दोष नहीं आने पाते, क्योंकि जो कर्म चिरकाल तक भोगा जा सकता है, वही एक साथ भोग लिया जाता है। उस का कोई भी भाग बिना विपाकानुभव किए नहीं छूटता, इसलिए न तो कृतकर्म का नाश है और न बद्धकर्म की निष्फलता ही है, इसी तरह कर्मानुसार आने वाली मृत्यु ही आती है। अतएव अकृत कर्म का आगम भी नहीं। जैसे-घास की सघन राशि में एक ओर छोटा सा अग्निकण छोड़ दिया जाए तो वह अग्निकण एक-एक तिनके को क्रमशः जलाते-जलाते सारी उस राशि को विलम्ब से जला सकता है, किन्तु यदि वे ही अग्निकण घास की शिथिल और विरल राशि में चारों ओर छोड़ दिये जाएं तो एक साथ उसे जला डालते हैं। 1. श्री स्थानांगसूत्र में आयुभेद के सात कारण लिखे हैं, जो कि निम्नोक्त हैं -सत्तविधेआउभेदे पण्णत्ते तंजहा-१-अज्झवसाणे,२-निमित्ते,३-आहारे,४-वेयणा५-पराघाते, ६-फासे, ७-आणापाणू, सत्तविधं भिजए आउ। (7/3/561) अर्थात् १-अध्यवसान-राग, स्नेह, और भयात्मक अध्यवसाय-संकल्प, २-निमित्त-दण्ड, कशा-चाबुक शस्त्र आदि रूप। ३-आहार-अधिक भोजन, ४-वेदना-नेत्र आदि की पीड़ा, ५-पराघात-गर्भपात आदि के कारण लगी हुई विशेष चोट,६-स्पर्श-सर्प आदि का डसना, ७-श्वासोश्वास-का रुक जाना, ये सात आयु भेद-नाश के कारण होते हैं। 2. जीवाणं भंते ! किं सोवक्कमाउया, निरुवक्कमाउया ? गोयमा ! जीवा सोवक्कमाउया वि निरुवक्कमाउया वि। (भगवती सूत्र शत० 20 उद्दे०१०) 740] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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