________________ अमुक प्रकार से वध करने की आज्ञा देता है। ___ चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर बोले-गौतम ! आज तुम ने जिंस भीषण दृश्य को देखा है और जिस स्त्री की मेरे पास चर्चा की है, यह वही देवदत्ता है। देवदत्ता के लिए ही महाराज पुष्यनन्दी ने इस प्रकार से दण्ड देने तथा वध करने की आज्ञा प्रदान की है। अतः गौतम ! यह पूर्वकृत कर्मों का ही कटु परिणाम है। इस तरह रोहीतक नगर के राजपथ में देखी हुई स्त्री के पूर्वभवसम्बन्धी गौतमस्वामी के प्रश्न का वीर भगवान् की तरफ से उत्तर दिया गया, जो कि मननीय एवं चिन्तनीय होने के साथ-साथ मनुष्य को विषयों से विरत रहने की पावन प्रेरणा भी करता है। -राईसर० जाव सत्थवाहेहिं मित्त जाव परिजणेणं-यहां पठित प्रथम जावयावत् पद तलवरमाडम्बियकोडुम्बियइब्भसेट्ठि-इन पदों का, तथा द्वितीय जाव-यावत् पद-णाइनियगसयणसम्बन्धि-इन पदों का परिचायक है। राजा नरेश का नाम है। ईश्वर. . तथा मित्र आदि शब्दों का अर्थ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। -रोयमाणे ३-यहां 3 के अंक से-कंदमाणे विलवमाणे-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। आंसुओं का बहना रुदन, ऊंचे स्वर में रोना क्रन्दन और आर्तस्वरपूर्वक रुदन विलाप कहलाता है। तथा आसुरुत्ते ४-यहां के अंक से अभिमत पद द्वितीय अध्याय में लिखे जा चुके हैं। -एतेणं विहाणेणं-यहां प्रयुक्त एतद् शब्द का अर्थ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां यह उज्झितक के दृश्य का बोधक लिखा है जब कि प्रस्तुत में रोहीतक नगर के राजमार्ग पर भगवान् गौतम स्वामी के द्वारा अवलोकित शूली पर भेदन की जाने वाली एक स्त्री के वृत्तान्त का परिचायक है। तथा पुरा जाव विहरतिभहां के जाव-यावत् पद से विवक्षित पाठ तृतीय अध्याय में लिखा जा चुका है।' प्रस्तुत सूत्र में देवदत्ता के द्वारा राजमाता की मृत्यु तथा उस के इस कृत्य के दण्डविधान आदि का वर्णन किया गया है। अब सूत्रकार देवदत्ता के ही अंग्रिम जीवन का वर्णन करते हैं: मूल-देवदत्ता णं भंते ! देवी इतो कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववजिहिति? छाया-देवदत्ता भदन्त ! देवी इतः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति। कुत्रोपपत्स्यते? पदार्थ-भंते ! भगवन् ! देवदत्ता णं देवी-देवदत्ता देवी। इतो-यहां से। कालमासेकालमास में अर्थात् मृत्यु का समय आने पर। कालं-काल। किच्चा-करके। कहिं-कहां। गमिहिति? 744] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध