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________________ राजा बनने के अनन्तर पुष्यनन्दी अपनी माता श्री देवी की निरन्तर भक्ति करने लगे। वे प्रतिदिन माता के पास जाकर उसके चरणों में प्रणाम कर तदनन्तर शतपाक और सहस्रपाक तैलों की मालिश से अस्थि, मांस, त्वचा और रोमों को सुखकारी ऐसी चार प्रकार की संवाहनक्रिया से शरीर का सुख पहुंचाते। तदनन्तर गंधवर्तक बटने से शरीर का उद्वर्तन कर उष्ण,शीत और सुगन्धित जलों से स्नान कराते, उसके बाद विपुल अशनादि का भोजन कराते, भोजन कराने के बाद जब वह श्रीदेवी सुखासन पर विराजमान हो जाती तब पीछे से वे स्नान करते और भोजन करते तदनन्तर मनुष्यसम्बन्धी उदार भोगों का उपभोग करते हुए समय व्यतीत करने लगे। टीका-प्रस्तुत सूत्र में अन्य बातों के अतिरिक्त मातृसेवा का जो आदर्श उपस्थित किया गया है, वह अधिक शिक्षाप्रद है। पिता के स्वर्गवास के अनन्तर राज्यसिंहासन पर आरूढ़ होने के बाद पुष्यनन्दी ने अपने आचरण से मातृसेवा का जो आदर्श प्रस्तुत किया है; वह शाब्दिक रूप से मातृभक्त बनने या कहलाने वाले पुत्रों के लिए विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है। घर में अनेक दास दासियों के रहते हुए भी अपने हाथ से माता की सेवा करना तथा उन को सप्रेम भोजनादि करा देने के बाद स्वयं भोजन करना आदि जितनी भी बातों का उल्लेख प्रस्तुत सूत्र में किया गया है, उस पर से पुष्यनन्दी को आदर्श मातृभक्त कहना या मानना उस के सर्वथा अनुरूप प्रतीत होता है। सूत्रगत-"सिरीए देवीए मायाभत्ते यावि होत्था"यह पाठ भी इसी बात का समर्थन करता है। ____ -वत्तीसइबद्धनाडएहिं जाव विहरति-यहां पठित जाव-यावत् पद सेणाणाविहवरतरुणीसंपउत्तेहिं उव्वनच्चिजमाणे 2 उवगिज्जमाणे 2 उवलालिजमाणे 2 पाउसा-वासारत्त-सरद-हेमन्त-वसन्त-गिम्ह-पजन्ते छप्पिं उउं जहाविभवेणं माणमाणे 2 कालं गालेमाणे 2 इढे सद्दफरिसरसरूवगन्धे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन का अर्थ निम्नोक्त है परम सुन्दरी युवतियों के साथ बत्तीस प्रकार के नाटकों से उपनृत्यमान-जो नृत्य कर रहा है, उपगीयमान-प्रशंसित अर्थात् जिस का गुणग्राम हो रहा है, उपलाल्यमान-उपलालित (क्रीड़ित) वह पुष्यनन्दी कुमार प्रावृट्-वर्षा ऋतु अर्थात् चौमासा, वर्षारात्र-श्रावण और भादों का महीना, शरद्-आसोज और कार्तिक का महीना हेमन्त-मार्गशीर्ष तथा पौष का महीना, बसंत-चैत्र और वैशाख मास का समय और ग्रीष्म ज्येष्ठ और आषाढ़ मास का समय, इन छ: ऋतुओं का यथाविभव अपने ऐश्वर्य के अनुसार अनुभव करता हुआ, आनन्द उठाता हुआ और समय व्यतीत करता हुआ एवं पांच प्रकार के इष्ट शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श विषयक 730 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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