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________________ कितना बीभत्स आचरण किया, उसका स्मरण करते ही हृदय कांप उठता है। इतनी बर्बरता तो हिंसक पशुओं में भी दृष्टिगोचर नहीं होती। एक कम पांच सौ राजमहिलाओं को जीते जी अग्नि में जला देना और इस पर भी मन में किसी प्रकार का पश्चात्ताप न होना, प्रत्युत हर्ष से फूले न समाना, मानवता ही नहीं किन्तु दानवता की पराकाष्ठा है। परन्तु स्मरण रहे-कर्मवाद के न्यायालय में हर बात का पूरा-पूरा भुगतान होता है, वहां किसी प्रकार का अन्धेर नहीं है। तभी तो सिंहसेन का जीव छठी नरक में उत्पन्न हुआ, अर्थात् उस को छठी नरक में नारकीयरूप से उत्पन्न होना पड़ा। विषयांध-विषयलोलुप जीव कितना अनर्थ करने पर उतारू हो जाते हैं इसके लिए सिंहसेन का उदाहरण पर्याप्त है। प्रस्तुत कथा से पाठकों को यह शिक्षा लेनी चाहिए कि विषयवासना से सदा दूर रहें, अन्यथा तज्जन्य भीषण कर्मों से नारकीय दुःखों का उपभोग करने के साथ-साथ जन्म मरण के प्रवाह से प्रवाहित भी होना पड़ेगा। __-असणं 4- यहां दिये गए 4 के अंक से अभिमत पाठ तृतीय अध्याय में लिखा जा चुका है। तथा -तहेव जाव साहरंति- यहां पठित तहेव पद का अर्थ है, वैसे ही अर्थात् जैसे महाराज सिंहसेन ने अशन, पानादि सामग्री को कूटाकारशाला में पहुंचाने का आदेश दिया था, वैसे राजपुरुषों ने सविनय उसको स्वीकार किया और शीघ्र ही उस का पालन किया, तथा इसी भाव का संसूचक जो आगम पाठ है उसे जाव-यावत् पद से अभिव्यक्त किया है, अर्थात् जाव-यावत् पद-पुरिसा करयल-परिग्गहियं दसणहं अंजलिं मत्थए कट्ट एयमटुं पडिसुणेति पडिसुणित्ता विउलं असणं 4 सुबहुं पुष्फवत्थगंधमल्लालंकारं च कूडागारसालं-इन पदों का परिचायक है। अर्थ स्पष्ट ही है। ___ -सुरं च ६-यहां 6 के अंक से अभिमत पाठ की सूचना अष्टम अध्याय में की जा चुकी है, तथा-आसादेमाणाई ४-यहां 4 के अंक से -विसाएमाणाइं परिभाएमाणाई, परिभुजेमाणाइं-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन पदों का अर्थ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं जब कि प्रस्तुत में नपुंसक लिंग। अर्थगत कोई भेद नहीं है। -रोयमाणाई ३-यहां 3 के अंक से -कंदमाणाई विलवमाणाइं-इन पदों का ग्रहण करना अभिमत है। रुदन रोने का नाम है। चिल्ला-चिल्ला कर रोना आक्रन्दन और आर्त स्वर से करुणोत्पादक वचनों का बोलना विलाप कहलाता है। तथा-एयकम्मे ४-यहां 4 के अंक से अभिमत पद द्वितीय अध्याय में दिए जा चुके हैं। ___प्रस्तुत सूत्र में नरेश सिंहसेन द्वारा किये गए निर्दयता एवं क्रूरता पूर्ण कृत्य तथा उन कर्मों के प्रभाव से उसका छठी नरक में जाना आदि बातों का वर्णन किया गया है। अब सूत्रकार प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [707
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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