________________ तथा नाटकों से मनोरंजन और नटों के द्वारा आत्मश्लाघा का अनुभव करती हुईं सानन्द समय यापन करने लगीं। मुनि श्री आनन्दसागर जी ने अपने विपाकसूत्रीय हिन्दी अनुवाद में पृष्ठ 289 पर"एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणगाइं पंचमाइसयाइं आमंतेति" इस पाठ का-एक कम पांच सौ देवियों (श्यामा के अतिरिक्त 499 रानियों) को तथा उन की एक कम पांच सौ माताओं को आमंत्रण दिया-यह अर्थ किया है, परन्तु यह अर्थ उचित प्रतीत नहीं होता, क्योंकि "देवीसयाणं माइसयाई" यहां पर सम्बन्ध में षष्ठी है। माता पुत्री का जन्यजनकभाव . सम्बन्ध स्पष्ट ही है। दूसरी बात-यदि देवियों (रानियों) को भी निमंत्रण होता तो जिस तरह सूत्रकार ने "आमंतेति" इस क्रिया का कर्म "माइयाई" यह द्वितीयान्त रक्खा है, उसी प्रकार "देवीसयाण" यहां षष्ठी न रख कर सत्रकार द्वितीया विभक्ति का प्रयोग करते, अर्थात "देवीसयाणं" के स्थान पर "देवीसयाई" इस पाठ का व्यवहार करते। तीसरी बात-.. महारानी श्यामा के जीवन के अपहरण का उद्योग करने वाली वे 499 माताएं ही तो हैं और महाराज सिंहसेन का भी उन्हीं पर रोष है। शेष रानियों का न तो कोई अपराध है और न ही उन्हें इस विषय में श्यामा ने दोषी ठहराया है। चौथी बात यहां पर "और" इस अर्थ का सूचक कोई चकारादि पद भी नहीं है। अतः हमारे विचारानुसार तो यहां पर 'एक कम पांच सौ देवियों की एक कम पांच सौ माताओं को निमंत्रण दिया' यही अर्थ युक्तियुक्त और समुचित प्रतीत होता है। ___ गंधव्वेहि य नाडएहि य-(गान्धर्वैश्च नाटकैश्च) यहां प्रयुक्त गान्धर्व पद-गाने वाले व्यक्ति का बोधक है। नृत्य करने वाले पुरुष का नाम नाटक-नर्तक है। तात्पर्य यह है कि गान्धर्वो और नाटकों से उन माताओं का यशोगान हो रहा था। यह सब कुंछ महाराज सिंहसेन ने उन के सम्मानार्थ तथा मनोविनोदार्थ ही प्रस्तुत किया था ताकि उन्हें महाराज के षड्यन्त्र का ज्ञान एवं भ्रम भी न होने पावे। ___ इस प्रकार कूटाकारशाला में ठहरी हुईं उन माताओं को निश्चिन्त और विश्रब्ध आमोद-प्रमोद में लगी हुईं जान कर महाराज सिंहसेन अर्द्ध रात्रि के समय बहुत से पुरुषों को साथ लेकर कूटाकारशाला में पहुंचते हैं, वहां जाकर कूटाकारशाला के तमाम द्वार बंद करा देते हैं और उस के चारों तरफ़ से आग लगवा देते हैं। परिणामस्वरूप वे-माताएं सब की सब वहीं जल कर राख हो जाती हैं। दैवगति कितनी विचित्र है, जिस अग्निप्रयोग से वे श्यामा को भस्म करने की ठाने हुए थीं उसी में स्वयं भस्मसात् हो गईं।' महाराज सिंहसेन ने महारानी श्यामा के वशीभूत होकर कितना घोर अनर्थ किया, 706 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध