________________ वस्त्रों एवं आभूषणों से सुसज्जित हो, सुप्रतिष्ठ नगर में महाराज सिंहसेन के पास आ जाती हैं। महाराज सिंहसेन उन देवियों की माताओं को निवास के लिए कुटाकारशाला में स्थान दे देता है। तदनन्तर कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर कहता है-हे भद्रपुरुषो! तुम लोग विपुल अशनादिक तथा अनेकविध पुष्पों, वस्त्रों, गन्धों-सुगन्धित पदार्थों, मालाओं और अलंकारों को कूटाकारशाला में पहुंचा दो।कौटुम्बिक पुरुष महाराज की आज्ञानुसार सभी सामग्री कूटाकारशाला में पहुंचा देते हैं। तदनन्तर सर्व प्रकार के अलंकारों से विभूषित उन एक कम पांच सौ देवियों की माताओं ने उस विपुल अशनादिक तथा सुरा आदि सामग्री का आस्वादनादि किया-यथारुचि उपभोग किया और नाटकनर्तक गान्धर्वादि से उपगीयमान-प्रशस्यमान होती हुईं सानन्द विचरने लगीं। तत्पश्चात् अर्द्ध रात्रि के समय अनेक पुरुषों के साथ सम्परिवृत-घिरा हुआ महाराज सिंहसेन जहां कूटाकारशाला थी वहां पर आया, आकर उसने कूटाकारशाला के सभी द्वार बन्द करा दिये और उस के चारों तरफ आग लगवा दी। तदनन्तर महाराज सिंहसेन के द्वारा आदीपित-जलाई गईं, त्राण और शरण से रहित हुईं वे एक कम पांच सौ देवियों की माताएं रुदन, आक्रन्दन और विलाप करती हुईं, कालधर्म को प्राप्त हो गईं। तत्पश्चात् एतत्कर्मा, एतद्विद्य, एतत्प्रधान और एतत्समाचार वह सिंहसेन राजा अत्यधिक पाप कर्मों का उपार्जन करके 34 सौ वर्ष की परमायु पाल कर कालमास में काल करके छठी नरक में उत्कृष्ट 22 सागरोपम की स्थिति वाले नारकियों में नारकीयरूप से उत्पन्न हुआ। टीका-सैंकड़ों स्तम्भों से सुशोभित तथा बहुत विशाल कुटाकारशाला के निर्माण के अनन्तर महाराज सिंहसेन ने श्यामा को छोड़ शेष 499 रानियों की माताओं को सप्रेम और सत्कार के साथ अपने यहां आने का निमंत्रण भेजा। महाराज सिंहसेन का आमंत्रण प्राप्त कर उन 499 देवियों की माताओं ने वहां जाने के लिए राजमहिलाओं के अनुरूप वस्त्राभूषणादि से अपने को सुसज्जित किया और वे सब वहां उपस्थित हुईं। महाराज सिंहसेन ने भी उनका यथोचित स्वागत और सम्मान किया, तथा कूटाकारशाला में उनके निवास का यथोचित प्रबन्ध कराया, एवं अपने राजसेवकों को बुला कर आज्ञा दी कि कूटाकारशाला में चतुर्विध(अशन, पान, खादिम और स्वादिम) आहार तथा विविध प्रकार के पुष्पों, वस्त्रों, गन्धों, मालाओं और अलंकारों को पहुँचा दो। महाराज सिंहसेन की आज्ञानुसार उन राजसेवकों ने सभी खाद्य पदार्थ तथा अन्य वस्तुएं प्रचुर मात्रा में वहां पहुँचा दीं। तब वे माताएं भी कूटाकारशाला में आए महार्ह भोज्यादि पदार्थों का यथारुचि भोगोपभोग करती हुईं तथा अनेक प्रकार के गान्धर्वो-गायकों प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [705