SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 684
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजमार्ग पर उन्होंने एक स्त्री को देखा जो कि अवकोटकबन्धन से बन्धी हुई थी। उस के कान और नाक कटे हुए थे। उसी के मांसखण्ड उसे खिलाये जा रहे थे। निर्दयता के साथ उसे मारा जा रहा था और उसके चारों ओर पुरुष, हाथी तथा घोड़े एवं सैनिक पुरुष खड़े थे। करुणाशील सहृदय गौतम स्वामी उस महिला की उक्त दुर्दशा से प्रभावित हुए नगर से यथेष्ट आहार ले कर वापिस उद्यान में आते हैं और भगवान् के चरणों में वन्दना नमस्कार करने के अनन्तर राजमार्ग में देखे हुए करुणाजनक दृश्य को सुना कर उस स्त्री के पूर्वभव को जानने की जिज्ञासा करते हुए कहते हैं कि हे भदन्त ! वह स्त्री पूर्वभव में कौन थी जो नरक के तुल्य असह्य वेदनाओं का उपभोग कर रही है ? इतना निवेदन करने के बाद अनगार गौतम स्वामी भगवान् महावीर स्वामी से उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे। "-उक्खेवो-" इस पद का अर्थ होता है-प्रस्तावना। अर्थात् प्रस्तावना को सूचित करने के लिए सूत्रकार ने "-उक्खेवो-" इस पद का प्रयोग किया है। प्रस्तावनारूप सूत्रांश निम्नोक्त है __"-जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणंजाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अझयणस्स अयमढे पण्णत्ते, णवमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स दुहविवागाणं समजेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ?-" अर्थात् यदि भगवन् ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के अष्टम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ बतलाया है तो उन्होंने दुःखविपाक के नवम अध्ययन का क्या अर्थ फरमाया . -रिद्ध-तथा-अड्ढे०-यहां के बिन्दु से अभिमत पाठ की सूचना द्वितीय अध्याय में दी गई है। तथा-अहीण. जाव उक्किदूसरीरा-यहां पठित जाव-यावत् पद द्वितीय अध्याय में पढ़े गए-पडिपुण्णपंचिंदियसरीरा-से लेकर-पियदंसणा सुरूवा-यहां तक के पदों का, तथा चतुर्थ अध्याय में पढ़े गए-उम्मुक्कबालभावा-से लेकर-लावण्णेण य उक्किट्ठा-यहां तक के पदों का बोधक है। तथा-समोसढे जाव गओ-यहां के-जावयावत्-पद से संग्रहीत पद अष्टम अध्याय में लिख दिये गए हैं। तथा-तहेव जाव रायमग्गंयहां पठित-तहेव-पद उसी भांति अर्थात् जिस तरह पहले वर्णित अध्ययनों में वर्णन कर आये हैं, उसी तरह प्रस्तुत में भी समझना चाहिए, तथा उसी वर्णन का संसूचक जाव-यावत् पद है। जाव-यावत् पद से अभिमत पाठ तृतीय अध्याय में लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि प्रस्तुत में रोहीतक नामक नगर का उल्लेख है, जब कि वहां पु रिमताल 1. रस्सी से गले और हाथ को मोड़ कर पृष्ठ भाग के साथ बांधना अवकोटक बन्धन कहलाता है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [675
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy