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________________ सुनाने की भी अवश्य कृपा करें। ____ तब जम्बू स्वामी की इस विनीत प्रार्थना को मान देते हुए श्री सुधर्मा स्वामी इस प्रकार फरमाने लगे कि हे जम्बू ! भव्याम्भोजदिवाकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी एक बार रोहीतक नामक नगर में पधारे और नगर के बाहर वे पृथिव्यवतंसक नामक उद्यान में विराजमान हो गए। उस उद्यान में धरण नामक यक्ष का एक यक्षायतन-स्थान था, जिस के कारण उद्यान की अधिक विख्याति हो रही थी। नगर में अनेक धनी, मानी सद्गृहस्थ रहते थे, जिन से वह धनं धान्यादि से युक्त और समृद्धिपूर्ण था। नगर में महाराज वैश्रमणदत्त राज्य . किया करते थे, वे भी न्यायशील और प्रजावत्सल थे। उन की महारानी का नाम श्रीदेवी था, और पुष्यनन्दी नाम का एक कुमार था, जो कि अपनी विशेष योग्यता के कारण उस समय युवराज पद पर प्रतिष्ठित हो चुका था। रोहीतक नगर व्यापार का केन्द्र था, वहां दूर-दूर से व्यापारी लोग आकर व्यापार. . किया करते थे। नगर के निवासियों में दत्त नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध व्यापारी था, जो कि धनाढ्य होने से नगर में पर्याप्त प्रतिष्ठा प्राप्त किए हुए था। उसकी कृष्णश्री नाम की रूपलावण्य में अद्वितीय भार्या थी। उनके देवदत्ता नाम की एक कन्या थी, जो कि नितान्त सुन्दरी थी। उसके शरीर के किसी भी अंग प्रत्यंग में न्यूनाधिकता नहीं थी। अधिक क्या कहें उस का अपूर्व रूपलावण्य अप्सराओं को भी लज्जित कर रहा था। वास्तव में मानुषी के रूप : में वह स्वर्गीया देवी थी। रोहीतक नगर व्यापारियों के आवागमन से तथा राजकीय सुचारु प्रबंध से विशेष ख्याति को प्राप्त कर रहा था, परन्तु श्रमण भगवान् महावीर के पधारने से तो उस में और भी प्रगति आ गई। नगर का धार्मिक वातावरण सजग हो उठा। जहाँ देखो धर्मचर्चा, जहाँ देखो भगवान् के गुणों का वर्णन। तात्पर्य यह है कि प्रभु वीर के वहां पधार जाने से लोगों में हर्ष, उत्साह और धर्मानुराग ठाठे मार रहा था। उद्यान की तरफ जाते और आते हुए नागरिकों के समूह, आनन्द से विभोर होते हुए दिखाई देते थे। उद्यान में आई हुई भावुक जनता को भगवान् की धर्मदेशना ने उस के जीवन में आशातीत परिवर्तन किया। उस में धर्मानुराग बढ़ा, और वह धार्मिक बनी। उन के धर्मोपदेश को सुन कर उस ने अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार धर्म में अभिरुचि उत्पन्न करते हुए धर्म सम्बन्धी नियमों को अपनाने का प्रयत्न किया। वीर प्रभु की धर्मदेशना को सुन कर जब जनता अपने-अपने स्थान को चली गई तब परम संयमी परम तपस्वी अनगार गौतम स्वामी बेले का पारणा करने के लिए भिक्षार्थ नगर में जाने की प्रभु से आज्ञा मांगते हैं। आज्ञा मिल जाने पर वे नगर में चले जाते हैं और वहां 674 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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