________________ मूलार्थ-नवम अध्ययन के उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भान्ति कर लेनी चाहिए। हे जम्बू ! उस काल और उस समय में रोहीतक नाम का ऋद्ध, स्तिमित और समृद्ध नगर था। वहां पृथिव्यवतंसक नाम का एक उद्यान था, उस में धरण नामक यक्ष का एक आयतन-स्थान था। वहां वैश्रमणदत्त नामक राजा का राज्य था। उसकी श्रीदेवी नाम की रानी थी। उसके युवराज पद से अलंकृत पुष्यनन्दी नाम का कुमार था। उस नगर में दत्त नाम का एक गाथापति रहता था, जोकि बड़ा धनी यावत् अपनी जाति में बड़ा सम्माननीय था। उसकी कृष्णश्री नाम की भार्या थी। उन के अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रियों से युक्त उत्कृष्ट शरीर वाली देवदत्ता नाम की एक बालिका-कन्या थी। उस काल और उस समय पृथिव्यवतंसक नामक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे, यावत् उनकी धर्मदेशना सुन कर परिषद् और राजा सब वापिस चले गए। उस समय भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य गौतम स्वामी षष्ठक्षमण-बेले के पारणे के लिए भिक्षार्थ गए यावद् राजमार्ग में पधारे, वहां पर वे हस्तियों, अश्वों और पुरुषों को देखते हैं और उनके मध्य में उन्होंने अवकोटक बन्धन से बन्धी हुई, कटे हुए कर्ण तथा नाक वाली यावत् सूली पर भेदी जाने वाली एक स्त्री को देखा। देख कर उन के मन में यह संकल्प उत्पन्न हुआ यावत् पहले की भान्ति भिक्षा लेकर नगर से निकले और भगवान् के पास आकर इस प्रकार निवेदन करने लगे कि भदन्त ! यह स्त्री पूर्व भव में कौन थी? टीका-संख्याबद्धक्रम से अष्टम अध्ययन के अनन्तर नवम अध्ययन का स्थान आता है। नवम अध्ययन में राजपत्नी देवदत्ता का जीवनवृत्तान्त वर्णित हुआ है। नवम अध्ययन को सुनने की अभिलाषा से चम्पा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य-उद्यान में विराजमान आर्य सुधर्मा स्वामी के प्रधान शिष्य श्री जम्बू स्वामी उन से विनयपूर्वक इस प्रकार निवेदन करते हैं . वन्दनीय गुरुदेव ! आप श्री के परम अनुग्रह से मैंने दुःखविपाक के अष्टम अध्ययन का अर्थ तो सुन लिया और उस का यथाशक्ति मनन भी कर लिया है, परन्तु अब मेरी दुःखविपाक के नवम अध्ययन के अर्थ को श्रवण करने की भी अभिलाषा हो रही है, ताकि यह भी पता लगे कि यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उस में किस व्यक्ति के किस प्रकार के जीवन-वृत्तांत का वर्णन किया है ? इसलिए आप नवम अध्ययन का अर्थ 1. वैयाकरणों के "-वर्तमान के समीपवर्ती भविष्यत् और भूतकाल में भी वर्तमान के समान प्रत्यय होते हैं-" इस सिद्धान्त से "भिद्यमानां" में वर्तमानकालिक प्रत्यय होने पर भी अर्थ भविष्य का-भेदन किये जाने वाली यह होगा। इस भाव का बोध कराने वाला व्याकरणसूत्र सिद्धान्त-कौमुदी में -वर्तमानसामीप्ये वर्तमानवद्वा। 3/3/131/ इस प्रकार है, तथा आचार्यप्रवर श्री हेमचन्द्र सूरि अपने हैमशब्दानुशासन में इसेसत्सामीप्ये सद्वद्वा। 5/4/1 / इस सूत्र से अभिव्यक्त करते हैं। अर्थ स्पष्ट ही है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [673 /