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________________ कहलाता है। .११-तलियाणि य भजियाणि य सोल्लियाणि य-तलितानि च तैलादिषु, भर्जितानि च अंगारादिषु, शूल्यानि च शूलपक्वानि शूले धृत्वा अंगारादिषु पक्वानि, अर्थात् तैलादि में तले हुए को तलित, अंगारादि पर भूने हुए को भर्जित तथा शूला के द्वारा अंगारादि पर पकाया गया मांस शूल्य कहलाता है। -तित्तिर० जाव मयूररसए-यहां पठित -जाव-यावत्-पद -वट्टगरसए य लावगरसए य कपोयरसए य कुक्कुडरसए य-इन पदों का, तथा -बहूहिं जाव जलयरयहां पठित जाव-यावत् पद -सण्हमच्छमंसेहि य खवल्लमच्छमंसेहि य-से लेकरपडागातिपडागमच्छमंसेहि य-यहां तक के पदों का, तथा-अयमंसेहि य एलमंसेहि य-से लेकर-महिसमंसेहि य- यहां तक के पदों का तथा -तित्तिरमंसेहि य वट्टगमंसेहि य-से लेकर -मयूरमंसेहि य- यहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। _ -सुरं च ६-यहां के अंक से-मधुं च मेरगं च जातिं च सीधुं च पसन्नं च-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन का अर्थ प्रथम अध्याय में लिखा जा चुका है। तथाआसादेमाणे ४-तथा –एयकम्मे 4- यहां के अंकों से अभिमत पाठ क्रमशः तृतीय अध्याय और द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। अब सूत्रकार श्रीद महानसिक के अग्रिम जीवन का वर्णन करते हैं मूल-तते णं सा समुद्ददत्ता भारिया जायनि या यावि होत्था, जाया जाया दारगा विणिघायमावजंति, जहा गंगादत्ताए चिंता। आपुच्छणा। ओवयाइयं, दोहलो जावदारगं पयाता, जाव जम्हाणं अहं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स उवाइयलद्धए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सोरियदत्ते णामेणं। तते णं से सोरिए दारए पंचधाती• जाव उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते याविहोत्था।तते णं से समुद्ददत्ते अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते। तते णं से सोरिए दारए बहूहि मित्त रोयमाणे 3 समुद्ददत्तस्स णीहरणं करेति 2 त्ता लोइयाइं मयकिच्चाई करेति। छाया-ततः सा समुद्रदत्ता भार्या जातनिद्रुता चाप्यभवत् / जाता जाता दारका विनिघातमापद्यते / यथा गंगादत्तायाः चिन्ता। आप्रच्छना। उपयाचितम्। दोहदो यावद् दारकं प्रजाता यावद् यस्मादस्माकमयं दारकः शौरिकस्य यक्षस्य उपयाचितलब्धः तस्माद् भवत्वस्माकं दारकः शौरिकदत्तो नाम्ना। ततः स शौरिको दारकः पञ्चधात्री प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [647
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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