________________ खण्डितानि-अर्थात् वर्तुल-गोलाकार वाले खण्डित पदार्थ वृत्तखण्डित, दीर्घ-लम्बे आकार. वाले खण्डित पदार्थ दीर्घखण्डित, ह्रस्व-छोटे-छोटे आकार वाले खण्डित पदार्थ ह्रस्व खण्डित कहलाते हैं। प्रस्तुत में ये सब पद मांस के विशेषण होने के कारण-वृत्तखण्डित मांस, दीर्घखण्डित मांस और ह्रस्वखण्डित मांस-इस अर्थ के परिचायक हैं।' ३-हिमपक्काणि-हिमपक्वानि-अर्थात् हिम बर्फ का नाम है, बर्फ में पकाये गए हिमपक्व कहलाते हैं। ४-जम्मघम्ममारुयपक्काणि-जन्मघर्ममारुतपक्वानि। प्रस्तुत में जन्मपक्व, धर्मपक्व और मारुतपक्व ये तीन पद हो सकते हैं। जन्मपक्व शब्द स्वतः ही पके हुए के लिए प्रयुक्त होता है, अर्थात् जिस के पकाने में हिम, धूप तथा हवा आदि विशेष कारण न हों, वह जन्मपक्व कहलाता है। जो धूप में पकाया गया हो उसे धर्मपक्व कहते हैं, और जो मारुत-हवा में पकाया गया हो, वह मारुतपक्व कहलाता है, अर्थात् वाष्प-भांप आदि द्वारा पक्व मारुतपक्व कहा जाता है। ५-कालाणि-कालानि, इस पद के दो अर्थ उपलब्ध होते हैं। जैसे कि १-जो किसी भी साधन से कृष्णवर्ण वाला बनाया गया हो, वह काल कहलाता है। २-काल शब्द प्रस्तुत में कालपक्व इस अर्थ का बोधक है। तात्पर्य यह है कि समय के अनुसार अर्थात् शीत, ग्रीष्म, वर्षादि ऋतुओं का प्रातः, मध्याह्न आदि काल के अनुसार पके हुएं को कालपक्व कहते हैं। ६-हेरंगाणि-इस पद के भी दो अर्थ किए जाते हैं। जैसे कि १-जो हिंगुल-सिंगरफ़ के समान लाल वर्ण वाला किया गया है, उसे हेरंग कहते हैं / अथवा २-मत्स्य के मांस के साथ जो पकाया गया है वह हेरंग कहलाता है। ७-महिढाणि-कोषकारों के मत में महिट्ट यह देश्य-देशविशेष में बोला जाने वाला पद है, और तक्र से संस्कारित इस अर्थ का परिचायक है। ८-आमलगरसियाणि-आमलकरसितानि-अर्थात् जो आंवले के रस से संस्कारित हो उसे आमलकरसित कहते हैं। ९-मुद्दिआकविद्वदालिमरसियाणि मृद्वीकाकपित्थदाडिमरसितानि-अर्थात् मृद्वीका-द्राक्षा के रस से संस्कारित मृद्वीकारसित, कपित्थ-कैथ (एक प्रकार का कण्टीला पेड़ जिस में बेर के समान तथा आकार के कसैले और खट्टे फल लगते हैं) के फलों के रस से संस्कारित कपित्थरसित, और दाडिम-अनार के रस से संस्कारित दाडिमरसित कहा जाता है। १०-मच्छरसियाणि-मत्स्यरसितानि, अर्थात् मत्स्य के रस से संस्कारित मत्स्यरसित 646 ] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध