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________________ करने वाला व्यक्ति शाकुनिक कहा जाता है। - ४-दिण्णभतिभत्तवेयणा-इस पद की व्याख्या पीछे तृतीय अध्याय में की जा चुकी है। ५-सण्हमच्छा जाव पडागातिपडागे-यहां पठित -जाव-यावत्- पद खवल्लमच्छा य जुगमच्छा य विब्भिडिमच्छा य हलिमच्छा य मग्गरिमच्छा य रोहियमच्छा य सागरमच्छा य गागरमच्छा य वडमच्छा य वडगरमच्छा य तिमिमच्छा य तिमिंगिलमच्छा य.णक्कमच्छा य तंदुलमच्छा य कण्णियमच्छा य सालिमच्छा य मणियामच्छा य लंगुलमच्छा य मूलमच्छा य-इत्यादि पदों का परिचायक है। श्लक्ष्णमत्स्य, खवल्लमत्स्य, युगमत्स्य, विब्भिडिमत्स्य, हलिमत्स्य, मग्गरिमत्स्य, रोहितमत्स्य, सागरमत्स्य, गागरमत्स्य, वडमत्स्य, वडगरमत्स्य, तिमिमत्स्य, तिमिङ्गिलमत्स्य, नक्रमत्स्य (नाका), तन्दुलमत्स्य (चावल के दाने जितना मत्स्य) कर्णिकमत्स्य, शालिमत्स्य, मणिकामत्स्य, लंगुलमत्स्य, मूलमत्स्य-ये सब मत्स्यविशेषों के ही नाम हैं। ६-अय जाव महिसे यहां पठित-जाव-यावत्-पद "-एले य रोझे य ससए य पसए सूयरे य सिंघे य हरिणे य वसभे य-" इन पदों का ग्राहक है। अज आदि शब्दों का अर्थ चतुर्थ अध्याय में किया जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये पद षष्ठ्यन्त हैं, जब कि प्रस्तुत में द्वितीयान्त हैं। विभक्तिगत भेद के अतिरिक्त अर्थगत कोई भेद नहीं है। तथातित्तिरे य जाव मऊरे-यहां पठित जाव-यावत् पद-वट्टए य लावए य कवोए य कुक्कुडे य-इन पदों का परिचायक है। तित्तिर तीतर को, वर्तक बटेर को, लावक लावा नामक पक्षिविशेष को, कपोत कबूतर को और कुर्कुट मुर्गे को कहते हैं। ७-कप्पणीकप्पियाई-कल्प्यते भिद्यते यया सा कल्पनी-छुरिका, कीकेत्यर्थः-अर्थात् छुरी या कैंची से काटे हुए मांस को कल्पनीकर्तित कहते हैं। - प्रस्तुत में -सण्हखण्डियाणि आदि जितने पद हैं वे सब मांस के विशेषण हैं / इन की व्याख्या निम्नोक्त है १-सण्हखण्डियाणि-सुक्ष्मरूपेण खण्डीकृतानि-अर्थात् जिसे सूक्ष्मरूप से खण्डित किया गया है। तात्पर्य यह है कि जिस के छोटे-छोटे टुकड़े किये गए हैं वह सूक्ष्मखण्डित कहलाता है। . २-वट्टदीहरहस्सखण्डियाणि-वृत्तं च दीर्घ च ह्रस्वं च एषां समाहारः वृतदीर्घह्रस्वं, वृत्तदीर्घह्रस्वरूपेण खण्डितानि। वृत्तखण्डितानि-गोलाकारेण खण्डीकृतानि, दीर्घखण्डितानि, दीर्घरूपेण खण्डितानि, ह्रस्वखण्डितानि--ह्रस्वरूपेण प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [645
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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