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________________ की जितनी भी निन्दा की जाए उतनी ही कम है। मदिरा के ही कारण अनेक राजाओं तक का खून बहा है। मदिरा ने ही जोधपुर, बीकानेर और कोटा आदि के राजाओं एवं सरदारों के प्राणों का हरण किया है, ऐसा एक चारण-भाट कवि ने अपनी कविता में कहा है। इस कवि ने और भी बहुत से नाम गिनाए हैं, जो शराब के कटु परिणाम का शिकार बने हैं। इस दुष्ट मदिरा ने न जाने कितने कलेजे सड़ाए हैं ? न मालूम कितने दैवी प्रकृति वालों को राक्षसी प्रकृति वाले बना डाला है ? कौन जाने इसने कितने आबाद घर बर्बाद कर दिए हैं ? इसी की बदौलत असंख्य मनुष्य अपने सुखमय जीवन से हाथ धो कर दुःख के घर बने रहते हैं। जिस घर में . शराब पीने का रिवाज है, उस घर की अवस्था देखने पर कलेजा मुंह को आता है। उस घर की स्त्रियां और बच्चे सब के सब टुकड़े-टुकड़े के लिए हाय-हाय करते रहते हैं, पर घर का मालिक शराब के चंगुल में ऐसा फंस जाता है कि उस का उस ओर तनिक ध्यान भी नहीं जाता। वह तो मात्र मदिरा के नशे में ही मस्त हो कर झूमता रहता है। वह यह नहीं सोचने पाता कि. इस के फलस्वरूप मेरे धन का, शक्ति का और मेरे सम्पूर्ण जीवन का सर्वतोमुखी विनाश होता जा रहा है। इस लिए ऐसे अनिष्टप्रद मदिरापान से सदा विरत रहने में कल्याण एवं सुख है। सारांश यह है कि सूत्रकार ने प्रस्तुत में श्रीद रसोइए के मांसाहार तथा मदिरापान के जघन्य दुष्कर्मों के फलस्वरूप उसको छठी नरक में उत्पन्न होने के कथानक से विचारशील सुखाभिलाषी पाठकों को अनमोल शिक्षाएं देने का अनुग्रह किया है। इस पर से पाठकों का यह कर्त्तव्य बन जाता है कि वे प्राणिघात, मांसाहार तथा मदिरापान की अन्यायपूर्ण, निंदित, दुर्गतिप्रद एवं दुःखमूलक सावध प्रवृत्तियों से अपने को सदा दूर रखें और अपना लौकिक तथा पारलौकिक आत्मश्रेय साधने का सुगतिमूलक सत्प्रयास करें। अन्यथा श्रीद रसोइए की भांति प्राणिघातादि से उपार्जित दुष्कर्मों का फल भोगने के लिए नरकादि गतियों में कल्पनातीत दु:खों का उपभोग करना पड़ेगा, एवं जन्ममरणरूप दुःखसागर में डूबना पड़ेगा। -अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे-यह पठित जाव-यावत् पद से अभिमत पदों का विवरण प्रथम अध्याय में किया जा चुका है। पाठक वहीं देख सकते हैं। मच्छिया-इत्यादि पदों का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह निम्नोक्त है १-मच्छिया-मात्स्यिकाः, मत्स्यघातिनः-अर्थात् मत्स्यों को मारने वाले व्यक्ति का नाम मात्स्यिक है। ___ २-वागुरिया-वागुरिकाः, मृगाणां बन्धका:-अर्थात् मृगादि पशुओं को जाल में फंसाने वाला व्यक्ति वागुरिक कहलाता है। ३-साउणिया-शाकुनिकाः, पक्षिणां घातकाः-अर्थात् पक्षियों का घात-नाशं 644 ] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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