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________________ यावदुन्मुक्तबालभावो विज्ञकपरिणतमात्रो यौवनकमनुप्राप्तश्चाप्यभवत्। ततः स समुद्रदत्तोऽन्यदा कदाचित् कालधर्मेण संयुक्तः। ततः स शौरिको दारको बहुभिर्मित्र रुदन् 3 समुद्रदत्तस्य निस्सरणं करोति 2 लौकिकानि मृतकृत्यानि करोति। पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। सा-वह / समुद्ददत्ता-समुद्रदत्ता। भारिया-भार्या। जायनिढुयाजातनिद्रुता-मृतवत्सा। यावि होत्था-भी थी, उस के। जाया जाया-उत्पन्न होते ही। दारगा-बालक। विणिघायमावजंति-विनिघात-विनाश को प्राप्त हो जाते थे। जहा-जैसे। गंगादत्ताए-गंगादत्ता को। चिंता-विचार उत्पन्न हुए थे, तद्वत् समुद्रदत्ता के भी हुए। आपुच्छणा-पति से पूछना। ओवाइयंयक्षमंदिर में जाकर मन्नत मानना। दोहलो-दोहद उत्पन्न हुआ। जाव-यावत् अर्थात् उस की पूर्ति की। दारगं-बालक को। पयाता-जन्म दिया। जाव-यावत् / जम्हा णं-जिस कारण। अम्हं-हमको। इमे-यह। दारए-बालक। सोरियस्स-शौरिक। जक्खस्स-यक्ष की। उवाइयलद्धए-मन्नत मानने से उपलब्ध हुआ है। तम्हा णं-इसलिए। अम्हं-हमारा। दारए-यह बालक। सोरियदत्ते-शौरिकदत्त / णामेणं-नाम से। होउ-हो। तते णं-तदनन्तर। से-वह। सोरिए-शौरिक / दारए-बालक। पंचधाती-पांच धायमाताओं से परिगृहीत। जाव-यावत् / उम्मुक्कबालभावे-बालभाव को त्याग कर। विण्णयपरिणयमेत्ते-विज्ञान की परिणत-परिपक्व अवस्था को प्राप्त हुआ। जोव्वणगमणुप्पत्ते यावि-युवावस्था को सम्प्राप्त भी। होत्था -हो गया था। तते णं-तदनन्तर अर्थात् उस के पश्चात् / से-वह। समुद्ददत्ते-समुद्रदत्त। अन्नया-अन्य। कयाइ-किसी समय। कालधम्मुणा-कालधर्म से। संजुत्ते-संयुक्त हुआ अर्थात् मृत्यु को प्राप्त हो गया। तते णं-तदनन्तर अर्थात् मृत्युधर्म को प्राप्त होने के अनन्तर / से-वह / सोरिए-शौरिक। दारए-बालक। बहूहि-अनेक। मित्त-मित्रों, निजकजनों, स्वजनों-सम्बन्धिजनों और परिजनों के साथ। रोयमाणे ३रुदन, आक्रन्दन और विलाप करता हुआ। समुद्ददत्तस्स-समुद्रदत्त का। णीहरणं-निस्सरण-अरथी का निष्कासन / करेति-करता है तथा। लोइयाई-लौकिक। मयकिच्चाई-मृतकसम्बन्धी कृत्यों को। करेतिकरता है। मूलार्थ-उस समय समुद्रदत्ता भार्या जातनिद्रुता-मृतवत्सा थी, उस के बालक जन्म लेते ही मर जाया करते थे। गंगादत्ता की भान्ति विचार कर, पति से पूछ कर, मन्नत मान कर तथा दोहद की पूर्ति कर समुद्रदत्ता बालक को जन्म देती है। बालक के शौरिक यक्ष की मन्नत मानने से उपलब्ध होने के कारण माता पिता ने उस का शौरिकदत्त नाम रक्खा। तदनन्तर पांच धाय माताओं से परिगृहीत बाल्यावस्था को त्याग, विज्ञान की परिपक्व अवस्था से सम्पन्न हो वह युवावस्था को प्राप्त हुआ। तदनन्तरकिसी अन्य समय समुद्रदत्त कालधर्म को प्राप्त हुआ, तबरुदन, आक्रन्दन और विलाप करते हुए शौरिकदत्त बालक ने अनेक मित्रों, ज्ञातिजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों एवं परिजनों के साथ समुद्रदत्त का निस्सरण किया-अरथी निकाली और . दाहकर्म एवं अन्य लौकिक मृतक-क्रियाएं की। 648 ] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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