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________________ इतनी ही बात है कि अन्त में हस्तिनापुर के श्रेष्ठिकुल में जन्म लेकर बोधि-लाभ के अनन्तर उसे विकास का अवसर प्राप्त होगा और आखिर में वह अपने ध्येय को प्राप्त कर लेगा। यह संसारी जीवों की लीलाओं का चित्र है, जिन्हें वे इस संसार की रंगस्थली पर निरन्तर करते चले जा रहे हैं। इस विचारपरम्परा द्वारा संसार में रहने वाले जीव की जीवनयात्रा का अवलोकन करने के बाद गौतम स्वामी भगवान् के चरणों में वन्दना करते हैं और इस अनुग्रह के लिए कृतज्ञता प्रकट करके अपने आसन पर चले जाते हैं, वहां जाकर आत्मसाधना में संलग्न हो जाते हैं। पाठकों को स्मरण होगा कि प्रस्तुत अध्ययन के आरम्भ में श्री जम्बू स्वामी ने अपने परमपूज्य गुरुदेव श्री सुधर्मास्वामी से सातवें अध्ययन को सुनाने की अभ्यर्थना की थी, जिस की पूर्ति के लिए श्री सुधर्मा स्वामी ने उन्हें प्रस्तुत सातवें अध्ययन का वर्णन कह सुनाया। सातवें अध्ययन को सुना लेने के अनन्तर श्री सुधर्मा स्वामी कहने लगे कि हे जम्बू ! इस प्रकार यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें अध्ययन का अर्थ बतलाया है। मैंने जो कुछ भी तुम्हें सुनाया है, वह सब प्रभुवीर से जैसे मैंने सुना था वैसे ही तुम्हें सुना दिया है, इस में मेरी अपनी कोई भी कल्पना नहीं है। इन्हीं भावों को सूत्रकार ने "निक्खेवो" इस एक पद में ओतप्रोत कर दिया है। निक्खेवो-पद का अर्थसम्बंधी ऊहापोह पहले कर आए हैं। प्रस्तुत में इस पद से.जों सूत्रांश अभिमत है, वह निम्नोक्त है . एवंखलु जम्बू!समणेणं भगवया महावीरेणंजाव सम्पत्तेणंदुहविवागाणं सत्तमस्स अझयणस्स अयमढे पण्णत्ते, त्ति बेमि-" इन पदों का अर्थ ऊपर की पंक्तियों में लिखा जा चुका है। - "-संसारो तहेव जाव पुढवीए-" यहां पठित संसार पद संसारभ्रमण का परिचायक है। तथा -तहेव-पद का अर्थ है-वैसे ही अर्थात् जिस तरह प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र का संसार भ्रमण वर्णित हुआ है, वैसे ही यहां पर भी उम्बरदत्त का समझ लेना चाहिए, तथा उसी संसारभ्रमण के संसूचक पाठ को जाव-यावत् पद से ग्रहण किया गया है, अर्थात् जाव-यावत् पद प्रथम अध्याय में पढ़े गए "-से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सरीसवेसु उववजिहिति, तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए-से लेकर-वाउ० तेउ आउ०-" यहां तक के पाठ का परिचायक है। तथा-पुढवीए०-यहां के बिन्दु से अभिमत पाठ की सूचना तृतीय अध्याय में दी जा चुकी है। - "-सेट्ठि०-" यहां के बिन्दु से -कुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिति-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। तथा-बोहिं, सोहम्मे महाविदेहे सिज्झिहिति ५-इन पदों से विवक्षित प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [615
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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