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________________ य वट्टकमसहि य, लावकमंसेहि य, कवोतमंसेहि, य कुक्कुडमंसहि य-" इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। कच्छपमांस आदि पदों का अर्थ पीछे लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र विभक्ति का है, प्रकृत्यर्थ में कोई भेद नहीं है। "-मच्छरसेहि य जाव मऊररसेहि य-" यहां पठित जाव-यावत् पद से भी ऊपर की भांति कच्छभरसेहि य-इत्यादि पदों का ही ग्रहण करना चाहिए। अन्तर मात्र मांस और रस, इन दोनों पदों का है। "-सुरं च 5-" तथा-आसाएमाणे 4, एवं-एयकम्मे ४-यहां दिए गए अंकों से ग्रहण किये गये पदों का विवरण विगत अध्ययनों में किया जा चुका है। प्रस्तुत सूत्र में धन्वन्तरि वैद्य के पूर्वभव का आरम्भ से समाप्ति तक का वर्णन कर दिया गया है। अब सूत्रकार उसके अग्रिम जीवन का वर्णन करते हैं मूल-तते णं सा गंगादत्ता भारिया जायणि या यावि होत्था, जाता जाता दारगा विणिघायमावति। तते णं तीसे गंगादत्ताए सत्थवाहीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकुडुम्बजागरियाए जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए 5 समुप्पन्ने-एवं खलु अहं सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं सद्धिं बहूई वासाइं उरालाई माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरामि, णो चेवणं अहं दारगंवा दारियं वापयामि, तं धण्णाओणं ताओ अम्मयाओ, सपुण्णाओणं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओणं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओणं ताओ अम्मयाओ सुलद्धे णं तासिं अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीवियफले, जासिं मन्ने नियगकुच्छिसंभूयाई थणदुद्धलुद्धगाइं महुरसमुल्लावगाइं मम्मणपयंपियाइं थणमूला कक्खदेसभागं अतिसरमाणगाई मुद्धगाइं पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थहिं गेण्हिऊण उच्छंगनिवेसियाई दिति समुल्लावए सुमहुरे पुणो पुणो मंजुलप्पभणिते। अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्णा एत्तो एक्कतरमवि न पत्ता। तं सेयं खलु ममं कल्लं जाव जलंते सागरदत्तं सत्थवाहं आपुच्छित्ता सुबहुं पुष्फवत्थगंधमल्लालंकारं गहाय बहूहिं मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणमहिलाहिं सद्धिं पाडलिसंडाओणगराओ पडिणिक्खमित्ता बहिया, जेणेव उम्बरदत्तस्स जक्खस्स जक्खायतणे तेणेव उवागच्छित्ता, तत्थ उंबरदत्तस्स जक्खस्स महरिहं पुष्फच्चणं करेत्ता जाणुपादपडियाए उवयाइत्तए-जति णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं वा प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [581
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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