SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 535
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थात् जिन संतप्त लोहशलाकाओं के द्वारा दूसरे के शरीर में चिन्ह किया जाए उन्हें दम्भन कहते हैं। स्वार्थ में क-प्रत्यय हो जाने पर दम्भनक शब्द का भी व्यवहार होता है। कौटिल्य शब्द छोटे मुद्गरों के लिए प्रयुक्त होता है। शस्त्र उस उपकरण को कहते हैं जिस से किसी को काटा या मारा जाए, अथवा गुप्ती (वह छड़ी जिस के अन्दर गुप्तरूप से किरच या पतली तलवार हो) आदि को शस्त्र कहा जाता है। पिप्पल छुरी को कहते हैं। कुल्हाड़े का नाम कुठार है। नहरनी (नाइयों का एक औज़ार जिस से नाखून काटे जाते हैं) का नाम नखच्छेदन है। दर्भ-दर्भ (बारीक घास) को कहते हैं अथवा दर्भ के अग्रभाग की तरह तीक्ष्ण हथियार का नाम भी दर्भ होता है। "-रिद्ध-" यहां के बिन्दु से विवक्षित पाठ को द्वितीय अध्याय में तथा "अहिम्मए जाव दुप्पडियाणंदे-" यहां के जाव-यावत् पद से विवक्षित पाठ को प्रथम अध्याय में लिखा जा चुका है। पाठक वहीं से देख सकते हैं। प्रस्तुत सूत्र में चारकपाल दुर्योधन के कारागारसम्बन्धी उपकरण-सामग्री का निर्देश किया गया है, अब अग्रिम सूत्र में उस के कृत्यों का वर्णन किया जाता है मूल-तते णं से दुजोहणे चारगपाले सीहरहस्स रण्णो बहवे चोरे य पारदारिए गंठिभेदे य रायावगारी य अणधारए य बालघाती य वीसंभघाती य जूतकारे य खंडपट्टे य पुरिसेहिं गेण्हावेति गेण्हावेत्ता उत्ताणए पाडेति 2 त्ता लोहदंडेण मुहं विहाडेति 2 त्ता अप्पेगतिए तत्ततंबं पज्जेति, अप्पेगतिए तउयं पजेति, अप्पेगतिए सीसगं पजेति, अप्पेगतिए कलकलं पजेति, अप्पेगतिए खारतेल्लं पजेति।अप्पेगतियाणं तेणंचेव अभिसेगंकारेति।अप्पेगतिए उत्ताणे पाडेति 2 त्ता आसमुत्तं पजेति, हत्थिमुत्तं पज्जेति जाव एलमुत्तं पज्जेति। अप्पेगतिए हेटामुहे पाडेति 2 त्ता घलघलस्स वम्मावेति 2 त्ता अप्पेगतियाणं तेण चेव ओवीलं दलयति। अप्पेगतिए हत्थंदुयाहिं बंधावेइ, अप्पेगतिए पायंदुयाहि बन्धावेइ, अप्पेगतिए हडिबंधणे करेति, अप्पेगतिए नियलबंधणे करेति, अप्पेगतिए संकोडियमोडियए करेति, अप्पेगतिए संकलबंधणे करेति अप्पेगतिए हत्थछिन्नए करेति जाव सत्थोवाडिए करेति, अप्पेगतिए वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि य हणावेति। अप्पेगतिए उत्ताणए कारवेति, उरे सिलं दलावेति 2 त्ता लउलं छुभावेति 2 त्ता पुरिसेहिं उक्कंपावेति। अप्पेगतिए 526 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy