________________ तंत्री शब्द चमड़े की रस्सी के लिए प्रयुक्त होता है। वरत्रा शब्द का पद्मचन्द्रकोषकार हस्तिकक्षस्थ रज्जु अर्थात् हाथी की पेटी, तथा अर्धमागधीकोषकार-चमड़े की रस्सी, तथा प्राकृतशब्दमहार्णवकोषकार-रस्सी और पण्डित मुनि श्री घासीलाल जी म० वरत्रा का-कपास के डोरों को मिला कर बटने से तैयार हुए मोटे-मोटे रस्से अथवा चमड़े का रस्सा-ऐसा अर्थ करते हैं। परन्तु प्रस्तुत में रज्जुप्रकरण होने के कारण वरत्रा शब्द चर्ममय रस्सी, या सामान्य रस्सी या कपास आदि का रस्सा-इन अर्थों का परिचायक है। वृक्षविशेष की त्वचा से निर्मित रज्जु का नाम वल्करज्जु है। केशों से निर्मित रज्जु वालरज्जुऔर सूत्र की रस्सी को सूत्ररज्जु कहते हैं। * असिपत्र तलवार को, करपत्र आरे (लोहे की दांतीदार पटरी, जिससे रेत कर लकड़ी चीरी जाती है, उसे आरा कहते हैं) को, क्षुरपत्र-उस्तरे (बाल मूंडने का औज़ार) को, और कदम्बचीरपत्र-शस्त्रविशेष को कहते हैं। असिंपत्र का अर्थ टीकाकार ने तलवार लिखा है। परन्तु इस में एक शंका उत्पन्न होती है कि असि शब्द ही जब तलवार अर्थ का बोध करा देता है तो फिर असि के साथ पत्र शब्द का संयोजन क्यों ? इस का उत्तर स्थानांग सूत्रीय टीका में दिया गया है। वहां लिखा है-जो तलवार पत्र के समान प्रतनु (पतली) होती है, वह असिपत्र कहलाती है, अर्थात् मात्र असि शब्द से तो सामान्य तलवार का बोध होता है जब कि उस के साथ प्रयुक्त हुआ पत्र यह शब्द उस में (तलवार में) पत्र के सदृश-समान प्रतनुता का बोध कराता है। इसी प्रकार करपत्र, क्षुरपत्र और कदम्बचीरपत्र के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए। ___ लोहे की कील-मेख को लोहकील कहते हैं / वंशशलाका का अर्थ बांस की सलाई होता है। अर्धमागधीकोषकार कडसक्करा-इस पद का संस्कृत प्रतिरूप "-कटशर्करा-" ऐसा मानते हैं। परन्तु प्राकृतशब्दमहार्णवकोषकार के मत में -कडसक्करा-यह देश्यदेशविशेष में बोला जाने वाला पद है। चर्मपट्ट-चमड़े के पट्टे का नाम है। अलपट्ट शब्द बिच्छू के पूंछ के आकार वाले शस्त्रविशेष के लिए अथवा बिच्छू की पूंछगत डंक के समान विषाक्त (जहरीले) शस्त्रविशेष के लिए प्रयुक्त होता है। सूची सूई का नाम है। दम्भन शब्द का अर्थ वृत्तिकार के शब्दों में-"यैरग्निप्रदीप्तैर्लोहशलाकादिभिः परशरीरेऽङ्क उत्पाद्यते तानि दम्भनानि-" इस प्रकार है, 1. पत्राणि पर्णानि तद्वत प्रतनुतया यानि अस्यादीनि तानि पत्राणि इति, असिः- खड्गः, स एव पत्रमसिपत्रं, करपत्रं क्रकचं येन दारु छिद्यते, क्षुरः-छुरः, स एव पत्रं क्षुरपत्रं, कदम्बचीरिकेति शस्त्रविशेष इति। (स्थानागसूत्रटीका, स्थान 4, उ०४) प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [525