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________________ टीका-जिज्ञासा की पूर्ति हो जाने पर जिज्ञासु शान्त अथच निश्चिन्त हो जाता है। उस की जिज्ञासा जब तक पूरी न हो ले तब तक उसकी मनोवृत्तियां अशान्त और निर्णय की उधेड़बुन में लगी रहती हैं। भगवान् गौतम के हृदय की भी यही दशा थी। राजमार्ग में अवलोकित वध्य पुरुष को नितान्त शोचनीय दशा की विचार-परम्परा ने उन के हृदय में एक हलचल सी उत्पन्न कर रखी थी। वे उक्त पुरुष के पूर्वभव-सम्बन्धी वृत्तान्त को जानने के लिए बड़े उत्सुक हो रहे थे, इसीलिए उन्होंने भगवान् से सानुरोध प्रार्थना की, जिस का कि ऊपर वर्णन किया जा चुका है। तदनन्तर गौतम स्वामी की उक्त अभ्यर्थना की स्वीकृति मिलने में अधिक विलम्ब नहीं हुआ। परम दयालु श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अपने परमविनीत शिष्य श्री गौतम अनगार की जिज्ञासापूर्ति के निमित्त उक्त वध्य पुरुष के पूर्वभव का वर्णन इस प्रकार आरम्भ किया। भगवान् बोले ___ गौतम ! इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में सर्वतोभद्र नाम का एक समृद्धिशाली सुप्रसिद्ध नगर था। उस में जितशत्रु नाम का एक महा प्रतापी राजा राज्य किया करता था। उस का महेश्वरदत्त नाम का एक पुरोहित था जोकि शास्त्रों का विशेष पण्डित था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का विशेष ज्ञाता माना जाता था। महाराज जितशत्रु की महेश्वरदत्त पर बड़ी कृपा थी। राजपुरोहित महेश्वरदत्त भी महाराज जितशत्रु के राज्य विस्तार और बलवृद्धि के लिए उचितानुचित सब कुछ करने को सन्नद्ध रहता था। इस सम्बन्ध में वह धर्माधर्म या पुण्यपाप का कुछ भी ध्यान नहीं किया करता था। संसार में स्वार्थ एक ऐसी वस्तु है कि जिस की पूर्ति का इच्छुक मानव प्राणी गर्हित से गर्हित आचरण करने से भी कभी संकोच नहीं करता। स्वार्थी मानव के हृदय में दूसरों के हित की अणुमात्र-जरा भी चिन्ता नहीं होती, अपना स्वार्थ साधना ही उस के जीवन का महान् लक्ष्य होता है। अधिक क्या कहें, संसार में सब प्रकार के अनर्थों का मूल ही स्वार्थ है। स्वार्थ के वशीभूत होता हुआ मानव व्यक्ति कहां तक अनर्थ करने पर उतारू हो जाता है इस के लिए महेश्वर दत्त पुरोहित का एक ही उदाहरण पर्याप्त है। उस के हाथ से कितने अनाथ, सनाथ बालकों का प्रतिदिन विनाश होता और जितशत्रु नरेश के राज्य और बल को स्थिर रखने तथा प्रभावशाली बनाने के निमित्त वह कितने बालकों की हत्या करता एवं जीते जी उन के हृदयगत मांसपिंडों को निकलवा कर अग्निकुण्ड में होमता हुआ कितनी अधिक क्रूरता का परिचय देता है, यह प्रस्तुत सूत्र में उल्लेख किए गए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जाति के बालकों के वृत्तान्त से भलीभान्ति जाना जा सकता है। इस के अतिरिक्त जो व्यक्ति बालकों का जीते 492] श्री विपाक सूत्रम् /पंचम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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