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________________ क्षत्रिय। वेस्स-वैश्य, तथा। सुद्ददारगे-शुद्र बालकों को। चउण्हं मासाणं-चार मास में। चत्तारि २-चारचार। छण्हं मासाणं-छ: मास में। अट्ठ २-आठ-आठ। संवच्छरस्स-वर्ष में। सोलस 2- सोलह 2 / जाहे ज़ाहे वि य णं-और जब 2 भी। जितसत्तू राया-जितशत्रु राजा। परबलेणं-परबल-शत्रुसेना के साथ। अभिजुज्झति-युद्ध करता था। ताहे ताहे वि य णं-तब तब ही। से-वह / महेसरदत्ते-महेश्वरदत्त / पुरोहिते-पुरोहित। अट्ठसयं-१०८ / माहणदारगाणं-ब्राह्मण बालकों। अट्ठसयं-१०८। खत्तियदारगाणंक्षत्रिय बालकों / अट्ठसयं-१०८ / वइस्सदारगाणं-वैश्य बालकों तथा। अट्ठसयं-१०८ / सुद्ददारगाणं-शूद्र बालकों को। पुरिसेहि-पुरुषों के द्वारा। गेण्हावेति २-पकड़वा लेता है, पकड़वा कर / जीवंतगाणं चेवजीते हुए। तेसिं-उन बालकों के / हिययउंडए-हृदयसम्बन्धी मांसपिंडों का। गेण्हावेति २-ग्रहण करवाता है, ग्रहण करवा के। जितसत्तुस्स-जितशत्रु / रण्णो-राजा के लिए। संतिहोम-शांतिहोम। करेति-करता है। तते णं-तदनन्तर। से-वह-जितशत्रु नरेश। परबलं-परबल-शत्रुसेना का। खिप्पामेव-शीघ्र ही। विद्धंसेति-विध्वंस कर देता था। वा-अथवा। पडिसेहिज्जति वा-शत्रु का प्रतिषेध कर देता था, अर्थात् उसे भगा देता था। मूलार्थ-इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल तथा उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारत वर्ष में सर्वतोभद्र नाम का एक भवनादि के आधिक्य से युक्त, आन्तरिक और बाह्य उपद्रवों से रहित तथा धन धान्यादि से परिपूर्ण नगर था। उस सर्वतोभद्र नामक नगर में जितशत्रु नाम का एक महा प्रतापी राजा राज्य किया करता था। उस जितशत्रु राजा का महेश्वरदत्त नाम का एक पुरोहित था जो कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन चारों वेदों का पूर्ण ज्ञाता था। - महेश्वरदत्त पुरोहित जितशत्रु राजा के राज्य और बल की वृद्धि के लिए प्रतिदिन एक-एक ब्राह्मण बालक, एक-एक क्षत्रिय बालक, एक-एक वैश्य बालक और एक-एक शूद्र बालक को पकड़वा लेता था, पकड़वा कर जीते जी उन के हृदयों के मांसपिंडों को ग्रहण करवाता था, ग्रहण करवा कर जितशत्रु राजा के निमित्त उन से शान्तिहोम किया करता था। तदनन्तर वह पुरोहित अष्टमी और चतुर्दशी में दो-दो बालकों, चार मास में चार-चार बालकों, छः मास में आठ-आठ बालकों और संवत्सर में सोलह-सोलह बालकों के हृदयों के मांसपिंडों से शान्तिहोम किया करता। तथा जब-जब जितशत्रु नरेश का किसी अन्य शत्रु के साथ युद्ध होता तब-तब वह-महेश्वरदत्त पुरोहित 108 ब्राह्मण बालकों, 108 क्षत्रिय बालकों, 108 वैश्य बालकों और 108 शूद्र बालकों को अपने पुरुषों के द्वारा पकड़वा कर उन के जीते जी हृदयगत मांस-पिंडों को निकलवा कर जितशत्रु नरेश के निमित्त शान्तिहोम करता। उस के प्रभाव से जितशत्रु नरेश शीघ्र ही शत्रु का विध्वंस कर देता या उसे भगा देता। प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / पंचम अध्याय , [491
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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