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________________ आदिम सूत्र इस प्रकार है ... मूल-पंचमस्स उक्खेवो, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी णामं नगरी होत्था, रि तत्थ णं कोसंबीए णगरीए सयाणीए णामं राया होत्था, महया। मियावती देवी। तस्स णं सयाणियस्स, पुत्ते मियावतीए अत्तए उदयणे णामं कुमारे होत्था, अहीण. जुवराया। तस्स णं उदयणस्स कुमारस्स पउमावती णामं देवी होत्था।तस्स णं सयाणियस्स सोमदत्ते नामं पुरोहिए होत्था, रिउव्वेयः। तस्सणं सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ता णामं भारिया होत्था। तस्स णं सोमदत्तस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए बहस्सइदत्ते नामं दारए होत्था, अहीण। छाया-पञ्चमस्योत्क्षेपः। एवं कौशाम्बी नाम नगर्यभवत्, कौशाम्ब्यां नगर्यां शतानीको नाम राजाऽभवत्, महा / मृगावती देवी। तस्य शतानीकस्य पुत्रो मृगावत्या आत्मजः उदयनो नाम कुमारोऽभूदहीन युवराजः। तस्योदयनस्य कुमारस्य पद्मावतीं नाम देव्यभवत् / तस्य शतानीकस्य सोमदत्तो नाम पुरोहितोऽभूत्, तस्य सोमदत्तस्य वसुंदत्ता नाम भार्याऽभूत्। तस्य सोमदत्तस्य पुत्रो वसुदत्ताया आत्मजो बृहस्पतिदत्तो नाम दारकोऽभूदहीन० / पदार्थ-पंचमस्स-पंचम अध्ययन का। उक्वो -उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भान्ति जान लेना चाहिए। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जम्बू !-हे जम्बू ! / तेणं कालेणं-उस काल में, तथा। तेणं समएणं-उस समय में। कोसंबी-कौशाम्बी। णाम-नाम की। णगरी-नगरी। होत्था-थी। रिद्ध-जो कि ऋद्ध-विशाल भवनादि के आधिक्य से युक्त थी, स्तिमित-आन्तरिक और बाह्य उपद्रवों के भय से रहित तथा समृद्ध-धन धान्यादि से परिपूर्ण थी। बाहि-नगरी के बाहर।चन्दोत्तरणे-चन्द्रावतरण नामक / उजाणेउद्यान था। सेयभद्दे-श्वेतभद्र नामक। जक्खे-यक्ष था। तत्थ णं-उस। कोसंबीए-कौशाम्बी। णयरीएनगरी में। सयाणीए-शतानीक / णाम-नामक। राया-राजा। होत्था-था। महया-जो कि महान् हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था। मियावती-मृगावती। देवी-देवी रानी थी। तस्स णं-उस।सयाणियस्सशतानीक का। पुत्ते-पुत्र। मियावतीए-मृगावती का। अत्तए-आत्मज। उदयणे-उदयन। णाम-नामक। कुमारे-कुमार। होत्था-था, जो कि। अहीण-अन्यून एवं निर्दोष पञ्चेन्द्रिय शरीर वाला तथा। जुवरायायुवराज था। तस्स णं-उस। उदयणस्स-उदयन। कुमारस्स-कुमार की। पउमावती-पद्मावती। णामनाम की। देवी-देवी। होत्था-थी। तस्स णं-उस। सयाणियस्स-शतानीक का। सोमदत्ते-सोमदत्त। प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / पंचम अध्याय [485
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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