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________________ अह पंचमं अज्झयणं अथ पञ्चम अध्याय जिस प्रकार जड़ को सींचने से वृक्ष की सभी शाखा, प्रशाखा और पत्र आदि हरे-भरे रहते हैं, ठीक उसी प्रकार ब्रह्मचर्य के पालन से सभी अन्य व्रत भी आराधित हो जाते हैं अर्थात् .. इस के आराधन से तप, संयम आदि सभी अनुष्ठान सिद्ध हो जाते हैं। यह सभी व्रतों तथा नियमों का मूल-जड़ है, इस तथ्य के पोषक वचन श्री प्रश्नव्याकरण आदि सूत्रों में भगवान् ने अनेकानेक कहे हैं। जैसे ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन करना सरल नहीं है, उसी तरह ब्रह्मचर्य के विपक्षी मैथुन से होने वाली हानियां भी आसानी से नहीं कही जा सकती हैं। वीर्यनाश करने से शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक सभी प्रकार की शक्तियों का ह्रास होता है। बुद्धि मलिन हो जाती है एवं जीवन पतन के गढ़े में जा गिरता है, इत्यादि। यह अनुभव सिद्ध बात है कि जहां सूर्य की किरणें होंगी वहां प्रकाश अवश्य होगा और जहां प्रकाश का अभाव होगा वहां अन्धकार की अवस्थिति सुनिश्चित होगी। इसी भांति जहां ब्रह्मचर्य का दिवाकर चमकेगा, वहां आध्यात्मिक ज्योति की किरणें जगमगा उठेगी। इसके विपरीत दुराचार का जहां प्रसार होगा वहां अज्ञानान्धकार का भी सर्वतोमुखी साम्राज्य होगा। आध्यात्मिक प्रकाश में रमण करने वाला आत्मा कल्याणोन्मुखी प्रगति की ओर प्रयाण करता है, जब कि आज्ञानान्धकार में रमण करने वाला आत्मा चतुर्गतिरूप संसार में भटकता रहता है। गत चतुर्थ अध्ययन में शकट कुमार नाम के व्यभिचारपरायण व्यक्ति के जीवन का जो दिग्दर्शन कराया गया है, उस पर से यह बात अच्छी तरह से स्पष्ट हो जाती है। ___प्रस्तुत पांचवें अध्ययन में भी एक ऐसे ही मैथुनसेवी व्यक्ति के जीवन का परिचय कराया गया है, जो कि शास्त्र और लोक विगर्हित व्यभिचारपूर्ण जीवन बिताने वालों में से एक था। सूत्रकार ने इस कथासंदर्भ से मुमुक्ष-जनों को व्यभिचारमय प्रवृत्ति से सदा पराङ्मुख रहने का व्यतिरेक दृष्टि से पर्याप्त सद्बोध देने का अनुग्रह किया है। इस पांचवें अध्ययन का 484 ] श्री विपाक सूत्रम् /पंचम अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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