________________ अतः विचारशील पाठक इस अध्ययन के कथासंदर्भ से-हिंसा से विरत होकर भगवती अहिंसा के आराधन की तथा वासनापोषक प्रवृत्तियों को छोड़ कर सदाचार के सौरभ से मानस को सुरभित करने की शिक्षाएं प्राप्त कर अपने को दयालु अथच संयमी बनाने का श्लाघनीय प्रयत्न करेंगे, ऐसी भावना करते हुए हम प्रस्तुत अध्ययन के विवेचन से विराम लेते हैं। // चतुर्थ अध्याय समाप्त॥ प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [483