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________________ वन्दना की और राजमार्ग के दृश्य का सारा वृत्तान्त कह सुनाया तथा उस दृश्य के अवलोकन से अपने हृदय में जो संकल्प उत्पन्न हुए थे, उन का भी वर्णन किया। तदनन्तर उस सस्त्रीक व्यक्ति के विषय में उसके कष्ट का मूल जानने की इच्छा से उसके पूर्व-जन्म का वृत्तान्त सुनने की लालसा रखते हुए भगवान् गौतम ने वीर प्रभु से विनम्र निवेदन किया कि भगवन् ! यह पुरुष पूर्वभव में कौन था ? और उसने पूर्वजन्म में ऐसा कौन सा कर्म किया था जिसके फलस्वरूप उसे इस प्रकार के असह्य कष्टों को सहन करने के लिए बाधित होना पड़ा ? इस प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जो कुछ फरमाया, उसका वर्णन अग्रिम सूत्र में दिया गया है। ___-समणस्स-यहां के बिन्दु से -भगवओ महावीरस्स-इन पदों का ग्रहण समझना, और-अन्तेवासी जाव रायमग्गे- यहां के जाव-यावत् पद से-इन्दभूती नामं अणगारे गोयम-सगोत्तेणं-से लेकर-संखित्तविउलतेउलेसे छटुंछद्रेणं अणिक्खेित्तेणंतवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं से भगवंगोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए' से लेकर दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-यहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। -पुरिसे०- यहां के बिन्दु से-पासति सन्नद्धबद्धवम्मियकवए-से लेकर - गहियाउहपरणे-यहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभीष्ट है। इन पदों का शब्दार्थ द्वितीय अध्याय में दिया जा चुका है। "-उक्खित्तकण्णनासं जाव उग्घोसणं-" यहां का जाव-यावत् पद-नेहतुप्पियगत्तं-से लेकर-इमं च एयारूवं-यहां तक के पाठ का परिचायक है। इन पदों का शब्दार्थ द्वितीय अध्याय में दे दिया गया है। . -चिंता तहेव जाव-यहां पठित चिन्ता शब्द से-तते णं से भगवओ गोतमस्स तं पुरिसं पासित्ता इमे अज्झत्थिते 5 समुप्पज्जित्था-अहोणं इमे पुरिसे जाव निरयपडिरूवियं वेयणं वेदेति-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। इन पदों का अर्थ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। तथा-तहेव- पद से जो विवक्षित है उस का उल्लेख भी द्वितीय अध्याय में किया गया है। तथा-जाव-यावत्- पद से -साहंजणीए नगरीए उच्चनीयमज्झिमकुले-से लेकर-पच्चणुभवमाणे विहरति-यहां तक के पाठ का ग्रहण करना अभिमत है। इन का अर्थ भी पहले लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां वाणिजग्राम 1. इन समस्त पदों का वर्णन प्रथम अध्याय में कर दिया गया है। 2. समस्त पद जानने के लिए देखिए द्वितीय अध्याय। 'प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [447
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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