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________________ अतिवृष्टि-वर्षा का अधिक होना, (2) अनावृष्टि-वर्षा का अभाव, (3) टिड्डीदल का पड़ना, (4) चूहा लगना, (5) तोते आदि पक्षियों का उपद्रव, (6) दूसरे राजा की चढ़ाई-इन भेदों से छः प्रकार का होता है। अर्द्धमागधीकोषकार ईति शब्द का अर्थ भय करते हैं और वह उसे सात प्रकार का मानते हैं। छ:- तो ऊपर वाले ही हैं, सातवां "स्वचक्रभय" उन्होंने अधिक माना है। तथा प्राकृतशब्दमहार्णवकोषकार ईति शब्द का धान्य वगैरह को नुकसान पहुंचाने वाला चूहा आदि प्राणिगण-ऐसा अर्थ करते हैं। परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में ईति शब्द से-खेती को हानि पहुंचाने वाले चूहा, ट्टिडी और तोता आदि प्राणिगण, यही अर्थ अपेक्षित है क्योंकि अतिवृष्टि आदि का सात उपद्रवों में स्वतन्त्ररूपेण ग्रहण किया गया है। (2) वैर-शत्रुता, (3) मारी-संक्रामक भीषण रोग, जिस से एक साथ ही बहुत से लोग मरें, मरी, प्लेग आदि। (4) अतिवृष्टि-अत्यन्त वर्षा, (5) अनावृष्टि-वर्षा का अभाव, (6) दुर्भिक्ष-ऐसा समय जिस में भिक्षा या भोजन कठिनता से मिले-अकाल,(७) डमर-राष्ट्रविप्लव-राष्ट्र के भीतर या बाहर उपद्रव का होना। सारांश यह है कि जहां पर तीर्थंकर भगवान विराजते या विचरते हैं वहां पर उनके आस पास 25 योजन के प्रदेश में ये पूर्वोक्त उपद्रव नहीं होने पाते, और अगर हों तो मिट जाते हैं, यह उन के अतिशय का प्रभाव होता है। तब यदि यह कथन यथार्थ है तो पुरिमताल नगर में जहां कि श्री वीर प्रभु स्वयं विराजमान हैं, चोरसेनापति अभग्नसेन के द्वारा ग्रामादि का दहन तथा अराजकता का प्रसार क्यों ? एवं उसे विश्वास में लाकर बन्दी बना लेने के बाद उस के साथ हृदय को कंपा देने वाला इतना कठोर और निर्दयी व्यवहार क्यों ? जिस महापुरुष के अतिशयविशेष से 25 योजन जितने दूर प्रदेश में भी उक्त प्रकार का उपद्रव नहीं होने पाता, उनकी स्थिति में एक प्रकार से उन के सामने, उक्त प्रकार का उपद्रव होता दिखाई दे, यह एक दृढ़ मानस वाले व्यक्ति के हृदय में भी उथलपुथल मचा देने वाली घटना है। इसलिए प्रस्तुत प्रश्न पर विचार करना आवश्यक ही नहीं नितान्त आवश्यक हो जाता है। उत्तर-इस प्रकार की शंका के उत्पन्न होने का कारण हमारा अव्यापक बोध है। जिन महानुभावों का शास्त्रीय ज्ञान परिमित होता है, उन के हृदय में इस प्रकार के सन्देह को स्थान प्राप्त होना कुछ आश्चर्यजनक नहीं है। अस्तु, अब उक्त शंका के समाधान की ओर भी पाठक ध्यान दें-- संसार में अनुकूल या प्रतिकूल जो कुछ भी हो रहा है, उस का सब से मुख्य कारण 1. अतिवृष्टिरनावृष्टिः शलभा मूषकाः शुकाः। प्रत्यासन्नाश्च राजानः षडेते ईतयः स्मृताः॥ 426 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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