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________________ नरेश। अभग्गसेणस्स-अभग्नसेन। चोरसे०-चोरसेनापति के। तं-उस। महत्थं-महार्थ। जाव-यावत्। , प्राभृत-भेंट को। पडिच्छति-स्वीकार किया और। अभग्गसेणं-अभग्नसेन / चोरसेणावतिं-चोरसेनापति का। सक्कारेति 2 संमाणेति २-सत्कार किया और सम्मान किया, सत्कार सम्मान करके उसे। पडिविसजेति-प्रतिविसर्जित किया-विदा किया। च-और। से-उसे। कूडागारसालं-कूटाकारशाला में। आवसहं-ठहरने के लिए स्थान। दलयति-दिया। तते णं-तदनन्तर / से-वह। अभग्गसेणे-अभग्नसेन / चोरसेणावती-चोरसेनापति। महब्बलेणं-महाबल। रण्णा-राजा से। विसज्जिते समाणे-विदा किया हुआ। जेणेव-जहां पर। कूडागारसाला-कूटाकारशाला थी। तेणेव-वहां पर। उवागच्छति-आता है और आकर वहां ठहर जाता है। तते णं-तदनन्तर।से-उस। महब्बले-महाबल। राया-राजा ने। कोडुंबियपुरिसेकौटुम्बिकपुरुषों को। सद्दावेति 2 त्ता-बुलाया और बुलाकर वह। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा। देवाणु० !-हे भद्रपुरुषो ! तुब्भे-तुम। गच्छह णं-जाओ, जाकर। विउलं-विपुल। असणं ४-अशन, पान, खादिम और स्वादिम को। उवक्खडावेह २-तैयार कराओ, तैयार करा कर। तं-उस। विउलंविपुल / असणं ४-अशनादिक सामग्री। सुरं च ५-और सुरादिक पांच प्रकार के मद्यों को तथा। सुबहुं-. अनेकविध। पुष्फ-पुष्प। वत्थ-वस्त्र / गंध-सुगंधित द्रव्य। मल्लालंकारं च-और माला तथा अलंकारादि को।अभग्गसेणस्स-अभग्नसेन / चोरसे०-चोरसेनापति को। कूडागारसालए-कूटाकारशाला में। उवणेहपहुंचाओ। तते णं-तदनन्तर। ते-वे। कोडुंबियपुरिसा-कौटुम्बिक पुरुष। करयल०-दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि कर के। जाव-यावत् / उवणेति-उन सब पदार्थों को वहां पहुंचा देते हैं। तते णं-तदनन्तर। से-वह। अभग्गसेणे-अभग्नसेन। चोरसेणावई-चोरसेनापति। बहूहि-अनेक। मित्त-मित्रादि के। सद्धिं-साथ। संपरिवुडे-संपरिवृत-घिरा हुआ। हाए स्नान किए हुए। जाव-यावत् / सव्वालंकारविभूसिते-सम्पूर्ण अलंकारों से विभूषित हुआ। तं-उस। विउलं-विपुल। असणं ४अशनादिक। सुरं च ५-सुरादिक-पञ्चविध-मद्यों का। आसाएमाणे ४-आस्वादन, विस्वादन आदि करता हुआ। पमत्ते-प्रमत्त हो कर। विहरति-विहरण करता है। मूलार्थ-तदनन्तर मित्र आदि से घिरा हुआ वह अभग्नसेन चोरसेनापति स्नान से निवृत्त हो, यावत् अशुभ स्वप्न का फल विनष्ट करने के लिए प्रायश्चित के रूप में मस्तक पर तिलक और अन्य मांगलिक कार्य करके समस्त आभूषणों से अलंकृत हो शालाटवी चोरपल्ली से निकल कर जहां पुरिमताल नगर था और जहां पर महाबल नरेश था वहां पर आता है, आकर दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके महाबल नरेश को जय एवं विजय शब्द से बधाई देता है, बधाई देकर महार्थ यावत् राजा के योग्य प्राभृत-भेंट अर्पण करता है। तदनन्तर महाबल नरेश अभग्नसेन चोरसेनापति द्वारा अर्पण किए गए उस उपहार को स्वीकार करके उसे सत्कार और सन्मान पूर्वक अपने पास से विदा करता हुआ कूटाकारशाला में उसे रहने के लिए स्थान दे देता है। तदनन्तर अभग्नसेन चोरसेनापति महाबल नरेश द्वारा सत्कारपूर्वक विसर्जित हो कर कूटाकारशाला में जाता है और वहां पर निवास करता है। इधर महाबल नरेश ने 420 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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