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________________ नृत्यादि का और चित्ताकर्षक नाटकों का विशेष प्रबन्ध किया गया हो, उसे गणिकावरनाटकीयकलित कहते हैं। (10) अनेकतालाचरानुचरित-तालाचर-ताल बजा कर नाचने वाले का नाम है। जिस उत्सव में ताल बजा कर नाचने वाले अनेक लोग अपना कौशल दिखाते हैं, उस उत्सव को अनेकतालाचरानुचरित कहते हैं। (11) प्रमुदितप्रक्रीडिताभिराम-जो उत्सव प्रमुदित-तमाशा दिखाने वाले और प्रक्रीडित-खेल दिखाने वालों से अभिराम-मनोहर हो, उसे प्रमुदितप्रक्रीडिताभिराम कहते (12) यथार्ह-जो उत्सव सर्व प्रकार से योग्य-आदर्श अथवा व्यवस्थित हो उसे यथार्ह कहते हैं। तात्पर्य यह है कि यह उत्सव अपनी उपमा स्वयं ही रहेगा। इस की आदर्शता एवं व्यवस्था अनुपम होगी। "-करयल• जाव एवं-" यहां पठित जाव-यावत् पद से विवक्षित पदों का विवरण पीछे लिखा जा चुका है। "-वसहिपायरासेहिं-" इस पद का अर्थ वृत्तिकार के शब्दों में-वासकप्रातभॊजनै:- इस प्रकार है। यहां वसति शब्द वासक-पड़ाव का बोधक है और प्रातराश शब्द प्रात:कालीन भोजन का परिचायक है, जिसको कलेवा या नाश्ता भी कहा जाता है। महाबल नरेश के भेजे हुए अनुचरों को सप्रेम उत्तर देकर विदा करने के बाद अभग्नसेन क्या करता है, और पुरिमताल नगर में जाने पर उसके साथ क्या व्यवहार होता है, अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में उस का वर्णन करते हैं मूल-तते णं से अभग्गसेणे चोरसे. बहूहिं मित्त० जाव परिवुडे पहाते जाव पायच्छित्ते सव्वालंकारभूसिते सालाडवीओ चोरपल्लीओ पडिनिक्खमति 2 त्ता जेणेव पुरिमताले णगरे जेणेव महब्बले राया तेणेव उवा० 2 त्ता करयल. महब्बलं रायं जएणं विजएणं वद्धावेति वद्धावेत्ता, महत्थं जाव पाहुडं उवणेति। तते णं से महब्बले राया अभग्गसेणस्स चोरसे तं महत्थ जाव पडिच्छति। अभग्गसेणं चोरसेणावतिं सक्कारेति संमाणेति 2 त्ता पडिविसज्जेति। कूडागारसालं च से आवसहं दलयति। तते णं से अभग्गसेणे चोरसेणावती महब्बलेणं रण्णा विसज्जिते समाणे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उवागच्छति। तते णं से महब्बले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेति 2 त्ता एवं वयासी-गच्छह णं 418 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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