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________________ .. (1) उच्छुल्क-जिस उत्सव में आई हुई किसी भी वस्तु पर राजकीय शुल्कमहसूल नहीं लिया जाता उसे उच्छुल्क कहते हैं। (2) उत्कर-जिस उत्सव में दुकानों के लिए ली गई जमीन का कर-भाड़ा तथा क्रय-विक्रय के लिए लाए गए गाय आदि पशुओं का कर-महसूल न लिया जाए, उसे उत्कर कहते हैं। ___ (3) अभटप्रवेश-जिस उत्सव में राजपुरुष किसी के घर में प्रवेश नहीं कर सकते, उस का नाम अभटप्रवेश है। तात्पर्य यह है कि उस उत्सव में किसी राजपुरुष द्वारा किसी घर की तलाशी नहीं ली जा सकती। (4) अदण्डिमकुदण्डिम-राज्य की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अपराध के अनुसार जो सजा दी जाती है उसे दण्ड कहते हैं और न्यूनाधिक-कमती बढ़ती सजा को कुदंड कहा जाता है। ___ दण्ड से निर्वृत्त-उत्पन्न द्रव्य दण्डिम और कुदण्ड से निर्वृत्त द्रव्य कुदंडिम कहलाता है। इन दोनों का जिस उत्सव में अभाव हो उसे अदण्डिमकुदण्डिम कहते हैं। (5) अधरिम-धरिम शब्द ऋणद्रव्य (कर्जा) का परिचायक है। जिस उत्सव में कोई किसी से अपना कर्ज नहीं ले सकता वह अधरिम कहलाता है। तात्पर्य यह है कि इस उत्सव में कोई किसी को ऋण के कारण पीड़ित नहीं कर सकेगा। ... (6) अधारणीय-जिस उत्सव में दुकान आदि लगाने के लिए राजा की ओर से आर्थिक सहायता दी जाए उसे अधारणीय कहते हैं। तात्पर्य यह है कि यदि किसी को काम करने के लिए रुपये की आवश्यकता हो तो वह किसी से कर्जा नहीं लेगा, प्रत्युत राजा अपनी * ओर से उसे रुपया देगा जोकि फिर वापिस नहीं लिया जाएगा। ऐसी व्यवस्था जिस उत्सव में हो उसे अधारणीय कहा जाता है। __(7) अनुचूतमृदंग-जिस उत्सव में वादकों-बजाने वालों ने, मृदङ्ग-तबलों को बजाने के लिए ठीक ढंग से ऊंचा कर लिया है।अथवा जिसमें बजाने वालों ने बजाने के लिए मृदंगों को परिगृहीत-ग्रहण किया हुआ हो, उस उत्सव को अनुचूतमृदंग कहा जाता है। (8) अम्लानमाल्यदामा-जिस उत्सव में अम्लान-प्रफुल्लित पुष्प और पुष्पमालाओं का प्रबन्ध किया गया हो, उसे अम्लानमाल्यदामा कहते हैं। (9) गणिकावरनाटकीयकलित-जो उत्सव प्रधान वेश्याओं और अच्छे-अच्छे नाटक करने वाले नटों से युक्त हो, अर्थात् जिस उत्सव में विख्यात वेश्याओं के गान एवं म भुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [417
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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