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________________ पुरिमताले नगरे महब्बलेणं रण्णा महया भडचडगरेणं दंडे आणत्ते-गच्छह णं तुमे देवाणु० ! सालाडविं चोरपल्लिं विलुपाहि 2 त्ता अभग्गसेणं चोरसेणावतिं जीवग्गाहं गेण्हाहि 2 त्ता ममं उवणेहि। तते णं से दंडे महया भडचडगरेणं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए। . ___छाया-ततस्तस्याभग्नसेनस्य चोरसेनापतेश्चारपुरुषाः अनया कथया लब्धार्थाः सन्तो यत्रैवाभग्नसेनश्चोरसेनापतिस्तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य करतल यावदेवमवादिषुःएवं खलु देवानुप्रिय ! पुरिमताले नगरे महाबलेन राज्ञा महता भटवृन्देन दण्डः आज्ञप्तः। गच्छ त्वं देवानुप्रिय ! शालाटवीं चोरपल्ली विलुम्प 2 अभग्नसेनं चोरसेनापति जीवग्राहं गृहाण, गृहीत्वा मह्यमुपनय। ततः स दण्डो महता भटवृंदेन यत्रैव शालाटवी चोरपल्ली तत्रैव प्रादीधरद् गमनाय। पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। तस्स-उस। अभग्ग०- अभनसेन। चोरसेणावइस्स-चोरसेनापति के। चारपुरिसा-गुप्तचर पुरुष। इमीसे कहाए- इस (सारी) बात से। लट्ठा समाणा-अवगत-परिचित हुए। जेणेव-जहां पर / सालाडवी-शालाटवी नामक। चोरपल्ली-चोरपल्ली थी और। जेणेव-जहां पर। अभग्गसेणे-अभग्नसेन / चोरसेणावई-चोरसेनापति था। तेणेव-वहां पर। उवागच्छंति 2 त्ता-आते हैं आकर। करयल जाव-दोनों हाथ जोड़ कर, यावत् अर्थात् मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि कर के। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे। देवाणुप्पिया !-हे स्वामिन् ! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। पुरिमताले णगरे-पुरिमताल नगर में। महब्बलेणं रण्णा-महाबल राजा ने। महया-महान / भडचडचरेणं'योद्धाओं के समुदाय के साथ। दंडे-दण्डनायक-कोतवाल को।आणत्ते-आज्ञा दी है कि। देवाणुप्पिया!" हे भद्र ! तुमे-तुम। गच्छह णं-जाओ, जाकर। सालाडविं-शालाटवी। चोरपल्लिं-चोर पल्ली को। विलुपाहि 2 त्ता-विनष्ट कर दो-लूट लो, लूट कर के। अभग्गसेणं-अभग्नसेन। चोर-सेणावतिचोरसेनापति को। जीवग्गाहं-जीते जी। गेण्हाहि 2 त्ता-पकड़ लो, पकड़ कर।ममं-मेरे सामने / उवणेहिउपस्थित करो। तते णं-तदनन्तर। से-उस। दंडे-दण्डनायक ने। महया-महान। भडचडगरेणं-सभटों के समूह के साथ। जेणेव-जहां पर / सालाडवी-शालाटवी। चोरपल्ली-चोरपल्ली थी। तेणेव-वहीं पर। पहारेत्थ गमणाए-जाने का निश्चय किया है। मूलार्थ-तदनन्तर अभग्नसेन चोरसेनापति के गुप्तपुरुषों को इस सारी बात का पता लगा तो वे शालाटवी चोरपल्ली में जहां पर अभग्नसेन चोरसेनापति था, वहां पर आए और दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके अभग्नसेन से इस प्रकार बोले कि हे स्वामिन् ! पुरमिताल नगर में महाबल राजा ने महान् सुभटों के समुदाय के साथ दण्डनायक-कोतवाल को बुला कर आज्ञा दी है कि तुम लोग शीघ्र प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [397
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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