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________________ आए हुए नागरिकों का स्वागत करते हुए सप्रेम उन्हें आश्वासन दिया और उनके कष्टों को शीघ्र से शीघ्र दूर करने की प्रतिज्ञा की और उन्हें पूरा-पूरा विश्वास दिला कर विदा किया। ___ आए हुए पीड़ित जनता के प्रतिनिधियों को विदा करने के बाद अभग्नसेन के क्रूरकृत्यों से पीड़ित हुई अपनी प्रजा का ध्यान करते हुए महाबल के हृदय में क्षत्रियोचित आवेश उमड़ा। उन की भुजाएं फड़कने लगीं, क्रोध से मुख एकदम लाल हो उठा और कोपावेश से दान्त पीसते हुए उन्होंने अपने दण्डनायक-कोतवाल को बुलाया और पूरे बल के साथ चोरपल्ली पर आक्रमण करने, उसे विनष्ट करने, उसे लूटने तथा उस के सेनापति . अभग्नसेन को पकड़ लाने का बड़े तीव्र शब्दों में आदेश दिया। दण्डनायक ने भी राजाज्ञा को स्वीकार करते हुए बहुत से सैनिकों के साथ चोरपल्ली पर चढ़ाई करने के लिए पुरिमताल नगर में से निकल कर बड़े समारोह के साथ चोरपल्ली की ओर प्रस्थान करने का निश्चय किया। "आसुरुत्ते जाव मिसिमिसीमाणे"- यहां पठित जाव-यावत् पद सें-कुविए. चण्डिक्किए- इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। शीघ्रता से रोषाक्रान्त हुए व्यक्ति का नाम आशुरुक्त है। मन से क्रोध को प्राप्त व्यक्ति कुपित कहलाता है। भयानकता को धारण करने वाला चाण्डिक्यित कहा जाता है। मिसिमिसीमाण शब्द-क्रोधाग्नि से जलता हुआ अर्थात् दान्त पीसता हुआ, इस अर्थ का परिचायक है। "सन्नद्ध. जाव पहरणेहिं-" यहां के जाव-यावत् पद, से-बद्धवम्मियकवएहिं उप्पीलियसरासणपट्टिएहिं पिणद्धगेविग्जेहिं विमलवरचिंधपट्टेहिं गहियाउह-इन पदों का ग्रहण समझना चाहिए। इन पदों का अर्थ द्वितीय अध्याय में लिख दिया गया है। -"फलएहिं जाव छिप्पतूरेणं"-यहां पठित जाव-यावत् पद से-णिक्किट्ठाहिं असीहिं अंसागतेहिं-से लेकर-अवसारियाहिं ऊरुघण्टाहि-यहां तक के पाठ का ग्रहण समझना / इन पदों का अर्थ पहले लिखा जा चुका है। ___-"उक्किट्ठ जाव करेमाणे"- यहां पठित जाव-यावत् पद से -सीहनायबोलकलकलरवेणं समुद्दरवभूयं पिव-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। इन पदों का अर्थ पूर्व में दिया जा चुका है। तदनन्तर क्या हुआ, अब सूत्रकार उस का वर्णन करते हैं मूल-तते णं तस्स अभग्ग० चोरसेणावइस्स चारपुरिसा इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई तेणेव उवागच्छंति 2 करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! 396 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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