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________________ स्कन्दश्री का वह दोहद अभग्न रहा / इसी कारण-दोहद के अभग्न होने से आज मैं इस बालक का "अभग्नसेन'' यह नामकरण करता हूं, आशा है आप सब इस में सम्मत होंगे और किसी को कोई विप्रतिपत्ति नहीं होगी। विजय चोर सेनापति के इस प्रस्ताव का सभी उपस्थित सभ्यों ने खुले दिल से समर्थन किया और सब ने "अभग्नसेन" इस नाम की उद्घोषणा की। तथा सब लोग बालक अभग्नसेन को शुभाशीर्वाद देते हुए अपने-अपने घरों को चले गए। ___ तदनन्तर कुमार अभग्नसेन की सारसंभाल के लिए पांच धायमाताएं नियुक्त कर दी गईं। वह उनके संरक्षण में शुक्लपक्ष की द्वितीया के चन्द्रमा की भान्ति बढ़ने लगा। प्रस्तुत सूत्रगत-"इड्ढिसक्कारसमुदएणं" तथा "दसरत्तं ठितिवडियं" इन दोनों की व्याख्या करते हुए आचार्य अभयदेव सूरि इस प्रकार लिखते हैं "ऋद्धया-वस्त्रसुवर्णादिसम्पदा, सत्कार:-पूजाविशेषस्तस्य समुदयः समुदायो यः स तथा। दशरात्रं यावत् स्थितिपतितं-कुलक्रमागतं पुत्रजन्मानुष्ठानं तत्" अर्थात् ऋद्धि शब्द से वस्त्र तथा सुवर्णादि सम्पत्ति अभिप्रेत है और पूजा-विशेष को सत्कार कहते हैं, एवं समूह का नाम समुदाय है। कुलक्रमागत-कुल परम्परा से चले आने वाले पुत्रजन्मसंबन्धी अनुष्ठानविशेष को स्थितिपतित कहते हैं, जो कि दश दिन में संपन्न होता है। अब सूत्रकार कुमार अभग्नसेन की अग्रिम जीवनी का वर्णन करते हैं मूल-तते णं से अभग्गसेणकुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था, अट्ठ दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ उप्पिं० भुंजति। छाया-ततः सोऽभग्नसेनकुमारः उन्मुक्तबालभावश्चाप्यभवत्, अष्ट दारिका, यावदष्टको दायो, उपरि० भुंक्त। पदार्थ-ततेणं-तदनन्तर / से-वह।अभग्गसेणकुमारे-अभग्नसेन कुमार / उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था-बालभाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त हो गया था तब उस का। अट्ठ दारियाओ-आठ लड़कियों के साथ। जाव-यावत् विवाह किया गया, तथा उसे। अट्ठओ-आठ प्रकार का। दाओप्रीतिदान-दहेज प्राप्त हुआ, वह। उप्पिं०-महलों के ऊपर / भुंजति-उन का उपभोग करने लगा। मूलार्थ-तदनन्तर कुमार अभग्नसेन ने बालभाव को त्याग कर युवावस्था में प्रवेश किया, तथा आठ लड़कियों के साथ उस का पाणिग्रहण-विवाह किया गया। उस विवाह में आठ प्रकार का उसे दहेज मिला और वह महलों में रह कर सानन्द उसका उपभोग करने लगा। टीका-पतितपावन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी श्री गौतम से कहते हैं कि गौतम! प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [381
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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