________________ उत्पन्न हुआ। किसी अन्य समय लगभग तीन मास पूरे होने पर स्कन्दश्री को यह दोहद (संकल्प विशेष) उत्पन्न हुआ वे माताएं धन्य हैं जो अनेक मित्रों की, ज्ञाति की, निजकजनों की, स्वजनों की, सम्बन्धियों की और परिजनों की महिलाओं-स्त्रियों तथा चोर-महिलाओं से परिवृत्त हो कर, स्नात यावत् अनिष्टोत्पादक स्वप्न को निष्फल करने के लिए प्रायश्चित के रूप में तिलक एवं मांगलिक कृत्यों को करके सर्व प्रकार के अलंकारों से विभूषित हो, बहुत से अशन, पान, खादिम और स्वादिम पदार्थों तथा 'सुरा, मधु, मेरक, जाति और प्रसन्ना इन मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, परिभाजन और परिभोग करती हुई विचर रहीं तथा भोजन करके जो उचित स्थान पर आ गई हैं, जिन्होंने पुरुष का वेष पहना हुआ है और जो दृढ़ बन्धनों से बन्धे हुए और लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवचलोहमय बख्तर को शरीर पर धारण किए हुए हैं, यावत् आयुध और प्रहरणों से युक्त हैं तथा जो वाम हस्त में धारण किए हुए फलक-ढालों से, कोश-म्यान से बाहर निकली हुई कृपाणों से, अंसगत-कन्धे पर रखे हुए शरधि-तरकशों से, सजीव-प्रत्यञ्चा-(डोरी) युक्त धनुषों से, सम्यक्तया उत्क्षिप्त-फैंके जाने वाले, शरों-बाणों से, समुल्लसितऊँचे किए हुए पाशों-जालों से अथवा शस्त्र विशेषों से, अवलम्बित तथा अवसारितचालित जंघाघंटियों के द्वारा, तथा क्षिप्रतूर्य (शीघ्र बजाया जाने वाला बाजा) बजाने से महान् उत्कृष्ट-आनन्दमय महाध्वनि से, समुद्र के रव-शब्द को प्राप्त हुए के समान गगनमंडल को ध्वनित-शब्दायमान करती हुईं; शालाटवी नामक चोरपल्ली के चारों तरफ का अवलोकन और उसके चारों तरफ भ्रमण कर दोहद को पूर्ण करती हैं। क्या ही अच्छा हो, यदि मैं भी इसी भांति अपने दोहद को पूर्ण करूं, ऐसा विचार करने के पश्चात् दोहद के पूर्ण न होने से वह उदास हुई यावत् आर्तध्यान करने लगी। - टीका-प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार पाठकों को पूर्व-वर्णित चोरसेनापति विजय की शालाटवी नामक चोरपल्ली का स्मरण करा रहे हैं। पाठकों को यह तो स्मरण ही होगा कि प्रस्तुत अध्ययन के प्रारम्भ में यह वर्णन आया था कि पुरिमताल नगर के ईशान कोण में एक विशाल, भयंकर अटवी थी। उस में एक चोरपल्ली थी। जिस के निर्माण तथा आकारविशेष का परिचय पहले दिया जा चुका है। 1. इन शब्दों के अर्थ द्वितीय अध्ययन में दिए जा चुके हैं। 2. इन पदों का अर्थ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [367