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________________ मांगलिक कार्य करने वाली। सव्वालंकारविभूसिता-सम्पूर्ण अलंकरणों से विभूषित हुईं। विपुलंविपुल-बहुत। असणं-अशन-रोटी, दाल आदि / पाणं-पान-पानी आदि पेय पदार्थ का। खाइम-खादिममेवा और मिष्टान्न आदि। साइमं-स्वादिम-पान सुपारी आदि सुगन्धित पदार्थों का। सुरं च ५-और पांच प्रकार की सुरा आदि का। आसादेमाणा ४-आस्वादन प्रस्वादन आदि करती हुईं। विहरंति-विहरण करती हैं। जिमियभुत्तुत्तरागयाओ-तथा जो भोजन करने के अनन्तर उचित स्थान पर आ गई हैं। पुरिसनेवत्थिया-पुरुष-वेष को धारण किए हुए हैं। सन्नद्ध-दृढ़ बन्धनों से बांधे हुए और लोहमय कसूलक आदि से संयुक्त कवच-लोहमय बख्तर को धारण किए हुए हैं। 'जाव-यावत्। पहरणाजिन्होंने आयुध और प्रहरण ग्रहण किए हुए हैं। भरिएहिं फलिएहि-वाम हस्त में धारण किए हुए फलक-ढालों के द्वारा। निक्किट्ठाहिं असीहिं-कोश-म्यान (तलवार कटार आदि रखने का खाना) से निकली हुईं कृपाणों के द्वारा। अंसागतेहि-तोणेहि-अंसागत-स्कन्ध देश को प्राप्त तूण-इषुधि (जिस में बाण रखे जाते हैं उसे तूण या इषुधि कहते हैं) के द्वारा / सजीवेहिं धणूहि-सजीव-प्रत्यंचा-डोरी-से युक्त धनुषों के द्वारा / समुक्खित्तेहिं सरेहि-लक्ष्यवेधन करने के लिए धनुष पर आरोपित किए गए शरों-बाणों द्वारा। समुल्लासियाहिं दामाहि-समुल्लसित-ऊंचे किए हुए पाशों-जालों अथवा शस्त्रविशेषों से।लंबियाहिलम्बित जो लटक रही हों। अवसारियाहि-तथा अवसारित-चालित अर्थात् हिलाई जाने वालीं। उरुघंटाहिजंघा में अवस्थित घंटिकाओं से। छिप्पतूरेणं वजमाणेणं-शीघ्रता.से बजने वाले बाजे के बजाने से। महया-महान्। उक्किट्ठ-उत्कृष्ट-आनन्दमय महाध्वनि आदि से। जाव-यावत् / समुद्दरवभूयं पिवसमुद्र शब्द के समान महान् शब्द को प्राप्त हुए के समान गगनमंडल को। करेमाणीओ-करती हुईं। सालाडवीए चोरपल्लीए-शालाटवी नामक चोरपल्ली के। सव्वओ समंता-चारों तरफ का। ओलोएमाणीओ-अवलोकन करती हुईं। आहिंडेमाणीओ-भ्रमण करती हुईं। दोहलं-दोहद को।विणेतिपूर्ण करती हैं। तं-सो। जइ णं-यदि। अहं पि-मैं भी। जाव-यावत्। विणिजामि-दोहद को पूर्ण करूं। त्ति कट्ट-ऐसा विचार करने के बाद। तंसि दोहलंसि-उस दोहद के। अविणिज्जमाणंसि-पूर्ण न होने पर। जाव-यावत्। झियाति-आर्तध्यान करती है। मूलार्थ-वह निर्णय नामक अण्डवाणिज नरक से निकल कर इसी शालाटवी नामक चोरपल्ली में विजयनामा चोरसेनापति की स्कन्दश्री भार्या के उदर में पुत्ररूप से १."सन्नद्ध. जाव पहरणा"- यहां पठित जाव-यावत् पद से "बद्धवम्मियकवया, उप्पीलियसरासणपट्टिया"-से ले कर "गहियाउह"-इन पदों का ग्रहण सूत्रकार को अभिमत है। इन पदों का शब्दार्थ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये पद द्वितीयान्त तथा पुरुषों के विशेषण हैं, जब कि यहां प्रथमान्त और स्त्रियों के विशेषण हैं। 366 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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