________________ हमारे पूर्व परिचित निर्णय नामक अंडवाणिज का जीव जो कि स्वकृत पापाचरण से तीसरी नरक में गया हुआ था, नरक की भवस्थिति को पूर्ण कर इसी चोरपल्ली में विजय की स्त्री स्कन्दश्री के गर्भ में पुत्ररूप से उत्पन्न होता है। __ जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि जीव दो प्रकार के होते हैं, एक शुभ कर्म वाले, दूसरे अशुभ कर्म वाले। शुभ कर्म वाले जीव जिस समय माता के गर्भ में आते हैं, तो उस समय माता के संकल्प शुभ और जब अशुभ कर्म वाले जीव माता के गर्भ में आते हैं तो उस समय माता के संकल्प भी अशुभ अथच गर्हित होने लग जाते हैं। निर्णय नामक अंडवाणिज का जीव कितने अशुभ कर्म उपार्जित किए हुए था, इसका निर्णय तो पूर्व में आए हुए उसके जीवनवृत्तान्त से सहज ही में हो जाता है। वह नरक से निकल कर सीधा स्कन्दश्री के गर्भ में आता है, उस को गर्भ में आए तीन मास ही हुए थे कि उसकी माता स्कन्दश्री को दोहद उत्पन्न हुआ। जीवात्मा के गर्भ में आने के बाद लगभग तीसरे महीने गर्भिणी स्त्री को गर्भगत जीव के प्रभावानुसार मन में जो संकल्पविशेष उत्पन्न होते हैं, शास्त्रीय परिभाषा में उन्हें दोहद कहते हैं। स्कन्दश्री को निम्नलिखित दोहद उत्पन्न हुआ वे माताएं धन्य हैं जो अपनी सहेलियों, नौकरानियों, निजजनों, स्वजनों, सगे सम्बन्धियों तथा अपनी जाति की स्त्रियों एवं अन्य चोरमहिलाओं के साथ एकत्रित हो कर स्नानादि क्रियाओं के बाद अनिष्टजन्य स्वप्नों को निष्फल करने के लिए प्रायश्चित्त के रूप में तिलक और मांगलिक कार्य करके वस्त्र भूषणादि से विभूषित होकर विविध प्रकार के खाद्य पदार्थों और नाना प्रकार की मदिराओं का यथारुचि सेवन करती हैं। तथा जो इच्छित भोज्य सामग्री एवं मदिरापान के अनन्तर उचित स्थान में आकर पुरुष के वेष को धारण करती हैं, और अस्त्र शस्त्रादि से सुसज्जित हो सैनिकों की तरह जिन्होंने कवचादि पहने हुए हैं, बायें हाथ में ढालें और दाहिने में नंगी तलवारें हैं। जिनके कन्धे पर तरकश, प्रत्यञ्च-डोरी से सुसज्जित धनुष हैं और चलाने के लिए बाणों को ऊपर कर रखा है, और जो वाद्य-ध्वनि से समुद्र के शब्द को प्राप्त हुए के समान आकाशमंडल को गुंजाती हुईं तथा शालाटवी नामक चोरपल्ली का सर्व प्रकार से निरीक्षण करती हुईं अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती हैं, वे माताएं धन्य हैं, उन्हीं का जीवन सफल हैं। सारांश यह है कि स्कन्दश्री के मन में यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि जो गर्भवती महिलाएं अपनी जीवन-सहचरियों के साथ यथारुचि सानन्द खान-पान करती हैं, तथा पुरुष का वेष बनाकर अनेकविध शस्त्रों से सैनिक तथा शिकारी की भांति तैयार होकर नाना प्रकार के शब्द करती हुईं बाहर जंगलों में सानन्द बिना किसी प्रतिबन्ध के भ्रमण करती हैं, वे 368 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध